भारतवर्ष से क्या आशय है? भारत नाम किस प्रकार पड़ा? What is meant by Bharatvarsha? How did the name Bharat come into existence?
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परिचय
“भारतवर्ष” शब्द भारतीय सभ्यता, संस्कृति और भू-राजनीतिक पहचान का प्राचीनतम और सर्वमान्य नाम है। यह केवल भौगोलिक सीमाओं का संकेत नहीं करता, बल्कि एक ऐसी भूमि का परिचय कराता है, जहाँ ज्ञान, धर्म, नीति, योग, ध्यान, वेद, उपनिषद, दर्शन, कला और अध्यात्म की गहरी जड़ें हैं।
भारतवर्ष शब्द का प्रयोग वेदों, पुराणों, महाकाव्यों और अनेक धार्मिक-दार्शनिक ग्रंथों में मिलता है। “भारत” केवल एक राष्ट्र का नाम नहीं, बल्कि एक विचार है—संस्कृति की धारा, सभ्यता की परंपरा और विश्व कल्याण की भावना।
भारतवर्ष का अर्थ
शब्द-व्युत्पत्ति
- “भारत” + “वर्ष”
- भारत का अर्थ है—भगवान भरत से संबंधित भूमि
- वर्ष का अर्थ है—विभाग या क्षेत्र
इस प्रकार “भारतवर्ष” का अर्थ हुआ—“भरत की भूमि” या “वह देश, जो भरत के नाम से प्रसिद्ध है।”
भारत का प्राचीन नाम
भारत के अनेक नाम हैं, जो विभिन्न युगों में विभिन्न संदर्भों में प्रयुक्त हुए:
नाम | अर्थ और संदर्भ |
---|---|
जंबूद्वीप | पौराणिक भूगोल के अनुसार सम्पूर्ण पृथ्वी का एक प्रमुख खंड |
आर्यावर्त | आर्यों के निवास का क्षेत्र |
भारतवर्ष | भरत वंश या राजा भरत के नाम पर |
हिन्दुस्तान | ईरानी और अरब व्यापारियों द्वारा प्रयुक्त शब्द |
इंडिया | यूनानी और अंग्रेजी में सिंधु नदी से व्युत्पन्न |
भारत नाम की उत्पत्ति की कथा
महाभारत के भरत से संबंध
“भारत” नाम की उत्पत्ति के बारे में सबसे प्राचीन और प्रामाणिक संदर्भ महाभारत और पुराणों में मिलता है।
भरत चक्रवर्ती (राजा भरत), जो ऋषभदेव के पुत्र थे, ने सम्पूर्ण भारतवर्ष पर राज्य किया। वे एक महान, न्यायप्रिय और वीर सम्राट थे।
उनकी ख्याति इतनी थी कि उनके नाम पर ही इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा।
महाभारत में उल्लेख
महाभारत में लिखा है—
“एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः।
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।”
(अर्थ: इस देश में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ पुरुषों से सम्पूर्ण पृथ्वी के लोग चरित्र और नीति की शिक्षा लें।)
विष्णु पुराण में भारतवर्ष
विष्णु पुराण (2.3.1) में उल्लेख है—
“उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।”
(अर्थ: समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में स्थित जो देश है, वह भारतवर्ष कहलाता है। वहाँ भरत वंश के लोग निवास करते हैं।)
राजा भरत कौन थे?
पौराणिक वर्णन
- ऋषभदेव के पुत्र
- जैन और हिन्दू दोनों परंपराओं में ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर माने जाते हैं।
- उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने सम्पूर्ण भारत पर राज्य किया।
- उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि प्राप्त की।
- उनके पराक्रम, नीति, धर्म पालन और न्यायप्रियता के कारण पूरा देश उनके नाम से “भारतवर्ष” कहलाया।
- महाभारत के राजा भरत
- शकुंतला और राजा दुष्यंत के पुत्र भरत।
- वे भी वीर, पराक्रमी और न्यायप्रिय राजा थे।
- महाभारत की कथा उन्हीं के वंशजों के इर्द-गिर्द घूमती है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
कुछ विद्वान मानते हैं कि “भरत” एक प्राचीन जनजाति का नाम था।
- ऋग्वेद में “भरत” नामक जनपद और उनके वीरों का उल्लेख मिलता है।
- वैदिक काल में भरतों ने दस राजाओं के विरुद्ध युद्ध (दशराज्ञ युद्ध) लड़ा था।
- इनकी विजय के कारण इन्हें विशेष प्रतिष्ठा मिली और इनकी भूमि “भारत” कहलाई।
भारत के नाम की विभिन्न व्याख्याएँ
1. भरत चक्रवर्ती की परंपरा
- जैन परंपरा के अनुसार भरत चक्रवर्ती ने सारा देश जीता।
- उनके साम्राज्य की व्यापकता इतनी थी कि देश को “भारतवर्ष” कहा जाने लगा।
2. ऋग्वैदिक भरत कुल
- ऋग्वेद में “भरत वंश” का उल्लेख है।
- इनका मुख्य निवास स्थान सरस्वती नदी के किनारे था।
- इन्होंने सप्तसिन्धु प्रदेश में प्रमुखता प्राप्त की।
3. दुष्यंत–शकुंतला के पुत्र भरत
- महाभारत की कथा के अनुसार दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत ने भी महान पराक्रम किया।
- उनके वंशजों को “भारत” कहा गया।
संविधान में भारत का उल्लेख
भारत का आधिकारिक नाम भारतीय संविधान में उल्लेखित है:
अनुच्छेद 1 (Article 1)
“भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा।”
(India, that is Bharat, shall be a Union of States.)
यह दर्शाता है कि भारत और इंडिया दोनों ही नाम आधिकारिक हैं।
भूगोल में भारतवर्ष की परिभाषा
भारतवर्ष शब्द का प्रयोग प्राचीन भारतीय भूगोल में व्यापक क्षेत्र के लिए किया जाता था।
- उत्तर में हिमालय से लेकर
- दक्षिण में हिंद महासागर तक
- पूर्व में ब्रह्मदेश (म्यांमार) से लेकर पश्चिम में सिंधु नदी तक
सम्पूर्ण उपमहाद्वीप को भारतवर्ष कहा जाता था।
भारत नाम के अन्य संदर्भ
संदर्भ | विवरण |
---|---|
वैदिक साहित्य | भरतों का उल्लेख प्रमुख योद्धा और जनपद के रूप में |
रामायण | भरत राम के भाई का नाम |
महाभारत | भरत वंश और कुरु वंश |
जैन ग्रंथ | भरत चक्रवर्ती, तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र |
भारतवर्ष की सांस्कृतिक विशेषताएँ
भारतवर्ष केवल भूगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक संस्कृति और सभ्यता की अवधारणा है।
1. धर्म और अध्यात्म की भूमि
- वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना यहीं हुई।
- योग, ध्यान, साधना की परंपरा यहीं पनपी।
2. सहिष्णुता और विविधता
- अनेक भाषाएँ, धर्म, जातियाँ, परंपराएँ एक साथ पनपीं।
- “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना का केंद्र।
3. विज्ञान और गणित का विकास
- शून्य की खोज, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, गणित, वास्तुशास्त्र में अद्वितीय योगदान।
4. कला और संस्कृति
- नाट्यशास्त्र, भरतनाट्यम, कथकली, मंदिर स्थापत्य, संगीत की समृद्ध परंपरा।
भारतवर्ष की सीमाओं का विस्तार
प्राचीन समय में भारतवर्ष की सीमाएँ आज के भारत से कहीं अधिक विस्तृत थीं।
दिशा | प्रमुख क्षेत्र |
---|---|
उत्तर | तिब्बत, हिमालय क्षेत्र |
दक्षिण | श्रीलंका तक |
पूर्व | ब्रह्मदेश, मलेशिया, इंडोनेशिया |
पश्चिम | अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, ईरान के कुछ हिस्से |
भारत के अन्य ऐतिहासिक नामों की उत्पत्ति
हिन्दुस्तान
- “हिन्दू” शब्द “सिंधु” से बना है।
- फारसी में ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ होता है।
- अरब और फारसी व्यापारियों ने “सिंधु” को “हिन्दु” कहा।
- “हिन्दुस्तान” शब्द फारसी-तुरानी प्रभाव से प्रचलित हुआ।
इंडिया
- “India” शब्द यूनानियों द्वारा “Indos” के रूप में प्रयुक्त हुआ।
- यह भी सिंधु नदी से व्युत्पन्न है।
- अंग्रेजों ने इसे “India” के रूप में अपनाया।
भारतवर्ष का आध्यात्मिक महत्व
भारतीय ग्रंथों में कहा गया है कि भारतवर्ष केवल भौतिक भू-भाग नहीं, बल्कि
- कर्मभूमि है
- धर्म और मोक्ष की भूमि है
- केवल भारत में ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है (पुराणों में ऐसा उल्लेख है)
निष्कर्ष
“भारतवर्ष” केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक संस्कृति, परंपरा और चेतना की भूमि है।
यह नाम राजा भरत के त्याग, पराक्रम और न्यायप्रिय शासन की स्मृति में स्थापित हुआ।
भरत के नाम पर ही इस देश का नाम पड़ा— “भारतवर्ष”।
यह नाम भारतीय आत्मा की पहचान है, जो आज भी करोड़ों लोगों के लिए गौरव का विषय है।
संक्षेप में कहा जाए तो—
“भारत” एक भूखंड नहीं, बल्कि हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत, अध्यात्म, विज्ञान, कला और सहिष्णुता की अनूठी परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है।”