इतिहास के सवाल 3 questions of history 3
शुरुआत से अंत तक जरूर पढ़े।
21.इतिहास क्या है?
उत्तर-इतिहास वह विज्ञान है जो अतीत की घटनाओं, संस्कृतियों, और समाजों का अध्ययन करता है। इतिहासकार अतीत की घटनाओं को समझने के लिए विभिन्न स्रोतों जैसे कि दस्तावेज़, पुरातात्विक साक्ष्य, और मौखिक परंपराओं का उपयोग करते हैं।
इतिहास के मुख्य उद्देश्य हैं-
1. अतीत की घटनाओं का वर्णन करना।
2. अतीत की घटनाओं के कारणों और परिणामों का विश्लेषण करना।
3. अतीत की संस्कृतियों और समाजों की विशेषताओं को समझना।
4. अतीत के अनुभवों से सबक लेना और वर्तमान को समझने में मदद करना।
5. भविष्य के लिए सबक लेना और निर्णय लेने में मदद करना।
इतिहास के प्रमुख विभाग हैं-
1. प्राचीन इतिहास
2. मध्यकालीन इतिहास
3. आधुनिक इतिहास
4. समकालीन इतिहास
इतिहास के स्रोत हैं-
1. दस्तावेज़ (कागज़, पत्र, आदि)
2. पुरातात्विक साक्ष्य (मूर्तियाँ, सिक्के, आदि)
3. मौखिक परंपराएँ
4. चित्र और फोटोग्राफ
5. स्मारक और संग्रहालय
इतिहास का महत्व है-
1. अतीत को समझने में मदद करता है।
2. वर्तमान को समझने में मदद करता है।
3. भविष्य के लिए सबक लेने में मदद करता है।
4. संस्कृति और समाज को समझने में मदद करता है।
5. निर्णय लेने में मदद करता है। questions of history 3
22.सिंधु सभ्यता के नगर नियोजन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-सिंधु सभ्यता का नगर नियोजन अत्यधिक विकसित और उन्नत था। यह सभ्यता लगभग 4300-1300 ईसा पूर्व के बीच पाकिस्तान और भारत के क्षेत्र में विकसित हुई थी। सिंधु सभ्यता के नगर नियोजन की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. योजनाबद्ध शहर- सिंधु सभ्यता के शहर योजनाबद्ध तरीके से बनाए गए थे, जिसमें सड़कें और मकानों का निर्माण व्यवस्थित तरीके से किया गया था।
2. ग्रिड प्रणाली- सिंधु सभ्यता के शहरों में ग्रिड प्रणाली का उपयोग किया गया था, जिसमें सड़कें और गलियाँ एक दूसरे के समकोण पर थीं।
3. स्वच्छता प्रणाली- सिंधु सभ्यता के शहरों में स्वच्छता प्रणाली विकसित थी, जिसमें घरों से निकलने वाले कचरे को निकालने के लिए नालियाँ और सीवर बनाए गए थे।
4. जल प्रबंधन- सिंधु सभ्यता के शहरों में जल प्रबंधन की व्यवस्था थी, जिसमें वर्षा के जल को संग्रहीत करने के लिए तालाब और बावड़ी बनाए गए थे।
5. भवन निर्माण- सिंधु सभ्यता के शहरों में मकानों का निर्माण पक्की ईंटों से किया गया था, जो मजबूत और टिकाऊ थे।
6. सार्वजनिक भवन- सिंधु सभ्यता के शहरों में सार्वजनिक भवन जैसे कि मंदिर, बाजार, और संग्रहालय बनाए गए थे।
7. परिवहन- सिंधु सभ्यता के शहरों में परिवहन की व्यवस्था थी, जिसमें गाड़ियाँ और नावें उपयोग की जाती थीं। questions of history 3
सिंधु सभ्यता के नगर नियोजन की उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं-
1. विकसित शहरीकरण
2. उन्नत स्वच्छता प्रणाली
3. जल प्रबंधन की व्यवस्था
4. मजबूत भवन निर्माण
5. सार्वजनिक भवनों का निर्माण
सिंधु सभ्यता के नगर नियोजन का महत्व इस प्रकार है-
1. यह शहरीकरण की एक आदर्श मॉडल है।
2. यह स्वच्छता और जल प्रबंधन की महत्ता को दर्शाता है।
3. यह भवन निर्माण की तकनीक को प्रदर्शित करता है।
4. यह सार्वजनिक भवनों के निर्माण की आवश्यकता को दर्शाता है। questions of history 3
23.इतिहास के पुरातात्विक स्रोत कौन से है?
उत्तर-इतिहास के पुरातात्विक स्रोत वे सामग्री हैं जो अतीत की संस्कृति, सभ्यता, और जीवनशैली के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। ये स्रोत निम्नलिखित हैं-
1. अवशेष (रखाइन)- पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त अवशेष जैसे कि मिट्टी के बर्तन, धातु के औजार, और अन्य वस्तुएँ।
2. स्मारक और मंदिर- प्राचीन स्मारक और मंदिर जो इतिहास की कहानी बताते हैं।
3. मूर्तियाँ और शिल्प- प्राचीन मूर्तियाँ और शिल्प जो कला और संस्कृति के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
4. सिक्के- प्राचीन सिक्के जो आर्थिक और राजनीतिक जानकारी प्रदान करते हैं।
5. दस्तावेज़ और अभिलेख- प्राचीन दस्तावेज़ और अभिलेख जैसे कि शिलालेख, ताम्रपत्र, और पapyri।
6. पुरातात्विक स्थल- प्राचीन शहरों, गाँवों, और बस्तियों के अवशेष जो इतिहास की जानकारी प्रदान करते हैं।
7. ममी और शव- प्राचीन ममी और शव जो जीवनशैली और संस्कृति के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
8. चित्र और भित्तिचित्र- प्राचीन चित्र और भित्तिचित्र जो कला और संस्कृति के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
9. संग्रहालय संग्रह- संग्रहालयों में संग्रहीत प्राचीन वस्तुएँ जो इतिहास की जानकारी प्रदान करती हैं।
10. प्राचीन भाषाओं के लेख- प्राचीन भाषाओं में लिखे गए लेख जो इतिहास की जानकारी प्रदान करते हैं।
इन पुरातात्विक स्रोतों का अध्ययन करके इतिहासकार अतीत की संस्कृति, सभ्यता, और जीवनशैली के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। questions of history 3
24.गांधार कला शैली की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-गांधार कला शैली प्राचीन भारत की एक महत्वपूर्ण कला शैली है, जो गांधार क्षेत्र (वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान) में विकसित हुई थी। यह कला शैली 1 शताब्दी ईसा पूर्व से 5 शताब्दी ईस्वी तक प्रचलित थी। गांधार कला शैली की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. ग्रीको-रोमन प्रभाव- गांधार कला शैली में ग्रीको-रोमन कला का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, जो उस समय के व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कारण था।
2. बुद्ध की मूर्तियाँ- गांधार कला शैली में बुद्ध की मूर्तियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं, जो बुद्ध के जीवन और उपदेशों को दर्शाती हैं।
3. मानव आकृतियों की वास्तविकता- गांधार कला शैली में मानव आकृतियों को वास्तविक और जीवन्त रूप में दर्शाया गया है।
4. कपड़ों की सजावट- गांधार कला शैली में कपड़ों की सजावट और डिज़ाइन बहुत विस्तृत और सुंदर है।
5. वास्तुकला- गांधार कला शैली में वास्तुकला भी बहुत विकसित थी, जिसमें स्तूप, मंदिर और अन्य भवन बनाए गए थे।
6. मिथुन और देवी-देवता- गांधार कला शैली में मिथुन और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी बनाई गईं, जो हिंदू और बौद्ध धर्म के देवताओं को दर्शाती हैं। questions of history 3
7. पत्थर और धातु का उपयोग- गांधार कला शैली में पत्थर और धातु का उपयोग व्यापक रूप से किया गया था।
गांधार कला शैली का महत्व इस प्रकार है-
1. भारतीय कला की विकसित शैली
2. ग्रीको-रोमन कला का प्रभाव
3. बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका
4. वास्तुकला और मूर्तिकला की विकसित शैली
5. भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर।
25.मौर्यकालीन कला पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-मौर्यकालीन कला भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक मौर्य वंश के शासनकाल में विकसित हुई। इस काल में कला की विभिन्न शैलियों ने अपनी विशेषताओं के साथ विकसित हुईं।
मौर्यकालीन कला की विशेषताएं-
1. स्तूप और मंदिर- मौर्यकाल में स्तूप और मंदिरों का निर्माण व्यापक रूप से हुआ, जो बौद्ध धर्म के प्रसार को दर्शाता है।
2. मूर्तिकला- मौर्यकाल में मूर्तिकला में विशेष प्रगति हुई, जिसमें पत्थर, धातु और मिट्टी की मूर्तियाँ बनाई गईं।
3. चित्रकला- मौर्यकाल में चित्रकला भी विकसित हुई, जिसमें भित्तिचित्र और पुस्तक चित्र बनाए गए।
4. वास्तुकला- मौर्यकाल में वास्तुकला में विशेष प्रगति हुई, जिसमे राजमहल, स्तूप और मंदिरों का निर्माण हुआ।
5. स्ट्रक्चर – मौर्यकाल में स्ट्रक्चर में विशेष प्रगति हुई, जिसमें पत्थर और धातु की मूर्तियाँ बनाई गईं। questions of history 3
मौर्यकालीन कला के प्रमुख उदाहरण–
1. अशोक के स्तंभ
2. सांची का स्तूप
3. भरहुत का स्तूप
4. मथुरा की मूर्तियाँ
5. पाटलिपुत्र के राजमहल
मौर्यकालीन कला का महत्व-
1. भारतीय कला की विकसित शैली
2. बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका
3. वास्तुकला और मूर्तिकला की विकसित शैली
4. भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर
5. इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।
26.सुश्रुत कौन थे?
उत्तर-सुश्रुत एक प्राचीन भारतीय चिकित्सक और शल्य चिकित्सक थे, जिन्हें आयुर्वेद के पिता के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म लगभग 600 ईसा पूर्व में हुआ था और उन्होंने अपना अधिकांश जीवन वर्तमान उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बिताया।
सुश्रुत ने आयुर्वेद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी पुस्तक “सुश्रुत संहिता” आयुर्वेद की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है। इस पुस्तक में उन्होंने चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, और अन्य चिकित्सा विषयों पर विस्तार से लिखा है।
सुश्रुत के योगदान-
1. शल्य चिकित्सा- सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्होंने कई नई शल्य चिकित्सा तकनीकों का विकास किया।
2. आयुर्वेद- सुश्रुत ने आयुर्वेद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी पुस्तक “सुश्रुत संहिता” आयुर्वेद की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है।
3. चिकित्सा पद्धति- सुश्रुत ने चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्होंने कई नई चिकित्सा पद्धतियों का विकास किया।
4. अनुसंधान- सुश्रुत ने चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान किया और उन्होंने कई नई चिकित्सा तकनीकों का विकास किया। questions of history 3
सुश्रुत की पुस्तक “सुश्रुत संहिता” में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की गई है-
1. मानव शरीर की रचना
2. रोगों के कारण और लक्षण
3. चिकित्सा पद्धतियाँ
4. शल्य चिकित्सा तकनीकें
5. औषधियों का उपयोग
सुश्रुत का महत्व-
1. आयुर्वेद के पिता
2. शल्य चिकित्सा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान
3. चिकित्सा पद्धति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान
4. आयुर्वेद की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक के लेखक
5. भारतीय चिकित्सा के इतिहास में महत्वपूर्ण व्यक्तित्व।
27.पतंजलि कौन थे?
उत्तर-पतंजलि एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक, व्याकरणवेत्ता, और योगी थे। उनका जन्म लगभग 400 ईसा पूर्व में हुआ था और उन्होंने अपना अधिकांश जीवन वर्तमान उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में बिताया।
पतंजलि के योगदान-
1. योगसूत्र- पतंजलि ने योगसूत्र लिखा, जो योग की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है।
2. व्याकरण- पतंजलि ने संस्कृत व्याकरण पर महत्वपूर्ण कार्य किया और उन्होंने महाभाष्य नामक पुस्तक लिखी।
3. दर्शन- पतंजलि ने दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्होंने योग दर्शन की स्थापना की।
4. आयुर्वेद- पतंजलि ने आयुर्वेद के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। Important questions of history 3
पतंजलि की योगसूत्र में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की गई है-
1. योग की परिभाषा
2. योग के आठ अंग
3. यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि
4. योग के फल
5. योग के बाधाएँ
पतंजलि का महत्व-
1. योग के पिता
2. व्याकरण और दर्शन के विकास में महत्वपूर्ण योगदान
3. आयुर्वेद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान
4. योगसूत्र के लेखक
5. भारतीय दर्शन और योग के इतिहास में महत्वपूर्ण व्यक्तित्व
पतंजलि की योगसूत्र आज भी योग के अध्ययन और अभ्यास के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। questions of history 3
28.गुरुकुल परंपरा पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-गुरुकुल परंपरा प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसमें छात्र गुरु के आश्रम में रहते हुए शिक्षा प्राप्त करते थे। यह परंपरा वेदिक काल से ही प्रचलित थी और इसका उद्देश्य छात्रों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित करना था।
गुरुकुल परंपरा की विशेषताएं-
1. गुरु-शिष्य परम्परा- गुरुकुल में गुरु और शिष्य के बीच एक गहरा संबंध होता था, जिसमें गुरु छात्रों को ज्ञान, अनुशासन और मार्गदर्शन प्रदान करते थे।
2. आश्रम जीवन- छात्र गुरु के आश्रम में रहते हुए साधारण जीवन जीते थे, जिसमें वे खुद के लिए काम करते थे और सामुदायिक जीवन में भाग लेते थे।
3. वेदिक शिक्षा- गुरुकुल में वेदिक शिक्षा पर बल दिया जाता था, जिसमें वेद, उपनिषद, दर्शन, और अन्य विषयों का अध्ययन किया जाता था।
4. अनुशासन और नियम- गुरुकुल में अनुशासन और नियमों का पालन किया जाता था, जिससे छात्रों में आत्म-नियंत्रण और जिम्मेदारी की भावना विकसित होती थी।
5. सामुदायिक जीवन- गुरुकुल में सामुदायिक जीवन पर बल दिया जाता था, जिसमें छात्र आपस में सहयोग और सेवा करते थे।
गुरुकुल परंपरा के लाभ-
1. व्यक्तिगत विकास- गुरुकुल परंपरा में छात्रों को व्यक्तिगत विकास के अवसर मिलते थे।
2. ज्ञान प्राप्ति- गुरुकुल में छात्रों को वेदिक ज्ञान और अन्य विषयों का अध्ययन करने का अवसर मिलता था।
3. अनुशासन और आत्म-नियंत्रण- गुरुकुल में छात्रों में अनुशासन और आत्म-नियंत्रण की भावना विकसित होती थी।
4. सामुदायिक जीवन- गुरुकुल में सामुदायिक जीवन पर बल दिया जाता था, जिससे छात्रों में सहयोग और सेवा की भावना विकसित होती थी।
5. आध्यात्मिक विकास- गुरुकुल परंपरा में छात्रों को आध्यात्मिक विकास के अवसर मिलते थे।
गुरुकुल परंपरा की चुनौतियाँ-
1. आधुनिक शिक्षा प्रणाली के साथ तालमेल
2. आर्थिक समर्थन की कमी
3. गुरु-शिष्य परम्परा की कमी
4. सामुदायिक जीवन की कमी
5. आध्यात्मिक विकास पर बल की कमी। questions of history 3
आजकल गुरुकुल परंपरा को आधुनिक शिक्षा प्रणाली के साथ जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे छात्रों को व्यक्तिगत विकास, ज्ञान प्राप्ति, अनुशासन, और आध्यात्मिक विकास के अवसर मिल सकें।
29.ग्राम स्वराज्य क्या था?
उत्तर-ग्राम स्वराज्य एक प्रकार की स्थानीय स्वशासन प्रणाली थी, जो भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलित थी। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय लोगों द्वारा अपने गांव के प्रशासन और विकास के लिए निर्णय लेने की प्रणाली थी।
ग्राम स्वराज्य की विशेषताएं-
1. स्थानीय स्वशासन- ग्राम स्वराज्य में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय लोगों द्वारा अपने गांव के प्रशासन के लिए निर्णय लेने की प्रणाली थी।
2. ग्राम सभा- ग्राम स्वराज्य में ग्राम सभा एक महत्वपूर्ण संस्था थी, जिसमें ग्रामीण लोग अपने गांव के विकास और प्रशासन के लिए निर्णय लेते थे।
3. सरपंच- ग्राम स्वराज्य में सरपंच ग्राम सभा का अध्यक्ष होता था, जो ग्रामीण लोगों के हितों की रक्षा करता था।
4. सामुदायिक भागीदारी- ग्राम स्वराज्य में सामुदायिक भागीदारी पर बल दिया जाता था, जिसमें ग्रामीण लोग अपने गांव के विकास में भाग लेते थे।
5. न्याय प्रणाली- ग्राम स्वराज्य में न्याय प्रणाली भी थी, जिसमें ग्रामीण लोगों के विवादों का निपटारा किया जाता था।
ग्राम स्वराज्य के लाभ-
1. स्थानीय विकास- ग्राम स्वराज्य में स्थानीय लोगों द्वारा अपने गांव के विकास के लिए निर्णय लेने से स्थानीय विकास होता था।
2. सामुदायिक भागीदारी- ग्राम स्वराज्य में सामुदायिक भागीदारी से ग्रामीण लोगों में आत्म-नियंत्रण और जिम्मेदारी की भावना विकसित होती थी।
3. न्याय प्रणाली- ग्राम स्वराज्य में न्याय प्रणाली से ग्रामीण लोगों के विवादों का निपटारा होता था।
4. आर्थिक विकास- ग्राम स्वराज्य में स्थानीय लोगों द्वारा अपने गांव के विकास के लिए निर्णय लेने से आर्थिक विकास होता था।
5. सामाजिक समरसता- ग्राम स्वराज्य में सामुदायिक भागीदारी से ग्रामीण लोगों में सामाजिक समरसता की भावना विकसित होती थी। questions of history 3
ग्राम स्वराज्य की चुनौतियाँ-
1. आधुनिक प्रशासनिक प्रणाली के साथ तालमेल
2. स्थानीय संसाधनों की कमी
3. शिक्षा और जागरूकता की कमी
4. सामुदायिक भागीदारी की कमी
5. आर्थिक समर्थन की कमी।
आजकल ग्राम स्वराज्य की प्रणाली को पंचायती राज प्रणाली के रूप में जाना जाता है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय लोगों द्वारा अपने गांव के प्रशासन और विकास के लिए निर्णय लेने की प्रणाली है।
30.अशोक के धर्म की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-अशोक के धर्म की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
अहिंसा- अशोक ने अपने शिलालेखों में अहिंसा का महत्व बताया है, जिसमें उन्होंने जानवरों की हत्या और युद्ध की निंदा की है।
धर्म- अशोक का धर्म बौद्ध धर्म पर आधारित था, लेकिन उन्होंने अन्य धर्मों का भी सम्मान किया और उनके अनुयायियों को संरक्षण प्रदान किया।
न्याय और समानता- अशोक ने अपने शासन में न्याय और समानता को महत्व दिया, जिसमें उन्होंने गरीबों और वंचितों के अधिकारों की रक्षा की।
शिक्षा और स्वास्थ्य- अशोक ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें उन्होंने विद्यालयों और चिकित्सालयों की स्थापना की।
विश्व शांति- अशोक ने विश्व शांति का संदेश दिया और अपने साम्राज्य में शांति और सौहार्द को बढ़ावा दिया। questions of history 3