7.इतिहास के सवाल 2 questions of history 2


इतिहास के सवाल 2 questions of history 2

शुरुआत से अंत तक जरूर पढ़े।

11.प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक साधन लिखिए।

उत्तर-प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक साधन निम्नलिखित हैं-

1. अभिलेख (शिलालेख, ताम्रपट)- ये प्राचीन राजाओं और शासकों द्वारा बनाए गए अभिलेख हैं, जिनमें ऐतिहासिक जानकारी होती है।
2. मुद्राएँ- प्राचीन काल में जारी की गई मुद्राएँ, जिन पर राजाओं के नाम और चित्र होते थे।
3. स्मारक और मंदिर- प्राचीन काल में बनाए गए स्मारक और मंदिर, जिनमें ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व होता है।
4. प्राचीन शहरों के अवशेष- प्राचीन शहरों के अवशेष, जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, और कालिभंगा।
5. गुफाएँ और चित्र- प्राचीन गुफाएँ और चित्र, जिनमें ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व होता है।
6. प्राचीन भंडार- प्राचीन भंडार, जिनमें ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की वस्तुएँ होती हैं।
7. मृत्तिका और शिल्प- प्राचीन मृत्तिका और शिल्प, जिनमें ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व होता है।
8. प्राचीन जलाशय- प्राचीन जलाशय, जैसे बावड़ी और तालाब।

इन पुरातात्विक साधनों से प्राचीन भारतीय इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। questions of history 2

12.अश्वघोष ने कौन से ग्रंथों की रचना की?

उत्तर-अश्वघोष एक प्राचीन भारतीय कवि और लेखक थे, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। उनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ हैं-

1. बुद्धचरित्र- यह एक महाकाव्य है, जिसमें भगवान बुद्ध के जीवन और उपदेशों का वर्णन है।
2. सौंदरानंद काव्य- यह एक महाकाव्य है, जिसमें भगवान बुद्ध के जीवन और उनके शिष्यों के कार्यों का वर्णन है।
3. शास्त्रालंकार- यह एक दर्शनशास्त्रीय ग्रंथ है, जिसमें बौद्ध दर्शन के सिद्धांतों का वर्णन है।

इन ग्रंथों के अलावा, अश्वघोष ने कई अन्य ग्रंथों की भी रचना की, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं-
1. नागानंद
2. सारिपुत्रप्रकरण
3. वज्रसूची

अश्वघोष के ग्रंथ बौद्ध धर्म और दर्शन के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं, और उनकी रचनाएँ भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। questions of history 2

13.मगध के उत्कर्ष के कारण लिखिए।

उत्तर-मगध के उत्कर्ष के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

1. भौगोलिक स्थिति- मगध की भौगोलिक स्थिति इसके उत्कर्ष में महत्वपूर्ण थी। यह गंगा नदी के किनारे स्थित था, जो व्यापार और परिवहन के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग था।
2. शक्तिशाली शासक- मगध के शासक, जैसे कि भरहुत, बिम्बिसार, और अजातशत्रु, शक्तिशाली और न्यायप्रिय थे, जिन्होंने राज्य की एकता और स्थिरता को बनाए रखा।
3. आर्थिक समृद्धि- मगध एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था, जो गंगा नदी के माध्यम से व्यापार करता था। इसकी आर्थिक समृद्धि ने इसके उत्कर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. सैन्य शक्ति- मगध की सैन्य शक्ति इसके उत्कर्ष में महत्वपूर्ण थी। इसकी सेना ने पड़ोसी राज्यों को जीतकर मगध की शक्ति को बढ़ाया।
5. बौद्ध धर्म का प्रसार- मगध बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, और भगवान बुद्ध ने यहाँ कई उपदेश दिए थे। बौद्ध धर्म का प्रसार मगध के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण था।
6. शिक्षा और संस्कृति- मगध में शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जो नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में विख्यात था।

इन कारणों ने मिलकर मगध के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य बनाया। questions of history 2

14.प्रागैतिहास एवं आध इतिहास में अंतर बताइए।

उत्तर-प्रागैतिहास और आधुनिक इतिहास में कई अंतर हैं-

प्रागैतिहास-
1. लिखित अभिलेखों का अभाव
2. पुरातात्विक साक्ष्यों पर आधारित
3. मौखिक परंपराओं और कथाओं पर आधारित
4. समय और घटनाओं का अनिश्चितता
5. आदिम समाज और संस्कृति का अध्ययन

आधुनिक इतिहास-
1. लिखित अभिलेखों की उपलब्धता
2. ऐतिहासिक दस्तावेजों और प्रामाणिक स्रोतों पर आधारित
3. विशिष्ट समय और घटनाओं का वर्णन
4. राज्य, समाज और संस्कृति के विकास का अध्ययन
5. विभिन्न ऐतिहासिक विधियों और सिद्धांतों का उपयोग

इन अंतरों के अलावा, प्रागैतिहास और आधुनिक इतिहास में अनुसंधान की विधियों और स्रोतों में भी भिन्नता है। questions of history 2

15.पोरस कौन था?

उत्तर-पोरस प्राचीन भारत के एक शक्तिशाली राजा थे, जिन्होंने पंजाब के क्षेत्र में शासन किया था। वह अपनी वीरता और सैन्य कौशल के लिए जाने जाते हैं।
पोरस का जन्म लगभग 350 ईसा पूर्व हुआ था और वह पुरुवंश के राजा अनुसार थे। वह अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बने थे।
पोरस की सबसे प्रसिद्ध घटना उनका युद्ध अलेक्जेंडर द ग्रेट से है, जो 326 ईसा पूर्व में हुआ था। अलेक्जेंडर ने अपनी विजय यात्रा के दौरान भारत पर हमला किया था, और पोरस ने उसका सामना किया था। यह युद्ध हाइडस्पीज के नाम से जाना जाता है।
हालांकि पोरस अलेक्जेंडर से हार गया था, लेकिन उसने अपनी वीरता और सैन्य कौशल से अलेक्जेंडर को प्रभावित किया था। अलेक्जेंडर ने पोरस को उसकी वीरता के लिए सम्मानित किया और उसे अपने राज्य का शासक बने रहने की अनुमति
दी।
पोरस की कहानी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, और वह एक महान योद्धा और राजा के रूप में याद किए जाते हैं।

16.आर्यभट्ट कौन था?

उत्तर-आर्यभट्ट प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। उनका जन्म 476 ईस्वी में पटना के निकट कुसुमपुर में हुआ था। आर्यभट्ट ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं-

1. शून्य की अवधारणा- आर्यभट्ट ने शून्य की अवधारणा को विकसित किया, जो गणित में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है।
2. दशमलव प्रणाली- आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली को विकसित किया, जो आज भी उपयोग की जाती है।
3. पृथ्वी की परिधि- आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि की गणना की, जो लगभग सही थी।
4. खगोलीय गणनाएँ- आर्यभट्ट ने खगोलीय गणनाएँ कीं, जैसे कि ग्रहों की गति और सूर्य और चंद्रमा के ग्रहण।
5. आर्यभट्टीय- आर्यभट्ट ने एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम आर्यभट्टीय है, जिसमें उन्होंने अपने गणितीय और खगोलीय सिद्धांतों को वर्णित किया।

आर्यभट्ट के योगदान भारतीय गणित और खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण माने जाते हैं, और उन्हें एक महान विद्वान के रूप में याद किया जाता है। questions of history 2

17.वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

उत्तर-वर्ण व्यवस्था प्राचीन भारतीय समाज में एक सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें लोगों को उनके जन्म और वंश के आधार पर चार वर्णों में विभाजित किया गया था। ये चार वर्ण हैं-

1. ब्राह्मण- ये विद्वान, पुजारी और शिक्षक थे, जो धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों के लिए जिम्मेदार थे।
2. क्षत्रिय- ये योद्धा, राजा और शासक थे, जो समाज की रक्षा और शासन के लिए जिम्मेदार थे।
3. वैश्य- ये व्यापारी, किसान और कलाकार थे, जो आर्थिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार थे।
4. शूद्र- ये मजदूर और सेवक थे, जो समाज के निचले स्तर पर थे।

वर्ण व्यवस्था के आधार पर लोगों को उनके कार्य और जिम्मेदारियों का निर्धारण किया गया था। यह व्यवस्था प्राचीन भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी, लेकिन समय के साथ यह व्यवस्था जाति व्यवस्था में बदल गई, जो आज भी भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

वर्ण व्यवस्था के मुख्य लक्ष्य थे-
सामाजिक संगठन
व्यक्तिगत कर्तव्यों का निर्धारण
समाज में स्थिरता और समरसता
धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का पालन

हालांकि, वर्ण व्यवस्था की आलोचना भी हुई है, क्योंकि यह व्यवस्था जातिगत भेदभाव और असमानता को बढ़ावा देती है। questions of history 2

18.हर्ष के साम्राज्य विस्तार पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-हर्ष का साम्राज्य विस्तार उत्तर भारत में एक महत्वपूर्ण घटना थी। हर्ष ने अपने पिता प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद थानेसर के राजा के रूप में सिंहासन संभाला और बाद में कन्नौज के सम्राट बन गए। उनका साम्राज्य उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भारत में फैला हुआ था, जिसमें नर्मदा नदी दक्षिणी सीमा के रूप में कार्य करती थी ¹।

हर्ष ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाए, लेकिन उन्हें चालुक्य वंश के पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा की लड़ाई में पराजित किया गया ¹। इसके बावजूद, हर्ष का साम्राज्य एक शक्तिशाली और समृद्ध साम्राज्य बना रहा, जो कला, संस्कृति और विज्ञान का केंद्र था।

हर्ष के साम्राज्य की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
उत्तरी भारत का एकीकरण- हर्ष ने उत्तरी भारत के कई छोटे राज्यों को एकजुट किया और एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की।
सांस्कृतिक और कलात्मक विकास- हर्ष के साम्राज्य में कला, संस्कृति और विज्ञान का विकास हुआ।
धार्मिक सहिष्णुता- हर्ष ने सभी धर्मों को समान आदर दिया और उनके साम्राज्य में धार्मिक सहिष्णुता का पालन किया गया।
आर्थिक समृद्धि- हर्ष के साम्राज्य में आर्थिक समृद्धि आई और व्यापार और वाणिज्य का विकास हुआ।

19.चार आर्य सत्य क्या है?

उत्तर-चार आर्य सत्य बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत हैं, जिन्हें भगवान बुद्ध ने अपने पहले उपदेश में वर्णित किया था। ये चार सत्य हैं-

1. दुख का सत्य (दु:ख-सत्य)- यह सत्य बताता है कि जीवन में दुख और पीड़ा होती है, और यह दुख जन्म, बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु से जुड़ा होता है।

2. दुख के कारण का सत्य (समुदय-सत्य)- यह सत्य बताता है कि दुख का कारण अविद्या, तृष्णा (कामना) और कर्म है। अविद्या से हमें सच्चाई की समझ नहीं होती, तृष्णा से हमें लगाव और मोह होता है, और कर्म से हमें भविष्य में दुख मिलता है।

3. दुख के नाश का सत्य (निरोध-सत्य)- यह सत्य बताता है कि दुख को नष्ट किया जा सकता है और यह निर्वाण प्राप्त करने से संभव होता है।

4. दुख नाश के मार्ग का सत्य (मार्ग-सत्य)- यह सत्य बताता है कि दुख को नष्ट करने के लिए अष्टांग मार्ग का पालन करना आवश्यक है, जिसमें शामिल हैं-
सम्यक दृष्टि (सही दृष्टिकोण)
सम्यक संकल्प (सही निश्चय)
सम्यक वाक (सही वाणी)
सम्यक कर्म (सही कार्य)
सम्यक जीविका (सही जीवन)
सम्यक प्रयास (सही प्रयास)
सम्यक स्मृति (सही स्मृति)
सम्यक समाधि (सही ध्यान)

इन चार आर्य सत्यों को बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के रूप में माना जाता है और ये बुद्ध के उपदेशों का केंद्र हैं। questions of history 2

20.जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत कौन से है?

उत्तर-जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

1. अहिंसा- जैन धर्म में अहिंसा को सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है। इसका अर्थ है किसी भी जीव को हानि न पहुँचाना।
2. अपरिग्रह- जैन धर्म में अपरिग्रह को महत्व दिया जाता है, जिसका अर्थ है वैराग्य और संयम।
3. अस्तेय- जैन धर्म में अस्तेय को महत्व दिया जाता है, जिसका अर्थ है चोरी न करना और सच्चाई का पालन करना।
4. ब्रह्मचर्य- जैन धर्म में ब्रह्मचर्य को महत्व दिया जाता है, जिसका अर्थ है इंद्रियों को नियंत्रित करना और संयम से जीना।
5. अनेकांतवाद- जैन धर्म में अनेकांतवाद को महत्व दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि सत्य एक नहीं होता और इसके कई पहलू होते हैं।
6. स्यादवाद- जैन धर्म में स्यादवाद को महत्व दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि सत्य को सापेक्ष रूप से समझना चाहिए।
7. कर्म सिद्धांत- जैन धर्म में कर्म सिद्धांत को महत्व दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि जीव के कर्मों के अनुसार उसकी गति निर्धारित होती है।
8. मोक्ष- जैन धर्म में मोक्ष को सबसे उच्च लक्ष्य माना जाता है, जिसका अर्थ है आत्मा की मुक्ति और स्वतंत्रता।

इन सिद्धांतों को जैन धर्म के मूल सिद्धांतों के रूप में माना जाता है और ये जैन धर्म के अनुयायियों के लिए मार्गदर्शक हैं। questions of history 2

studyofhistory.com

Leave a Comment