धर्म की भारतीय अवधारणा Indian concept of religion
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परिचय
“धर्म” शब्द भारतीय जीवन-दर्शन का केन्द्रीय तत्व है। भारत की संस्कृति, जीवन पद्धति, नैतिकता, सामाजिक व्यवस्था और आध्यात्मिक साधना का आधार धर्म ही है।
भारतीय समाज में धर्म का स्थान केवल पूजा-पाठ या ईश्वर भक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक समग्र जीवन व्यवस्था है, जो व्यक्तिगत आचरण, सामाजिक दायित्व, नीति, न्याय और अध्यात्म को एक सूत्र में पिरोती है।
आज जब हम ‘धर्म’ शब्द का प्रयोग करते हैं, तो अधिकांश लोग इसका अर्थ किसी विशेष सम्प्रदाय, पूजा पद्धति या मजहब से जोड़ते हैं। परंतु भारतीय परंपरा में ‘धर्म’ का अर्थ ‘मजहब’ या ‘रिलीजन’ नहीं है।
यह व्यापक जीवन-सिद्धांत है, जो व्यक्ति, समाज और ब्रह्मांड की स्थिरता, समरसता और संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
धर्म शब्द की व्युत्पत्ति और मूल अर्थ
व्युत्पत्ति (Etymology)
‘धर्म’ शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है— धारण करना, संभालना, पालन करना।
धर्म का शाब्दिक अर्थ है—
- जो संसार को धारण करे
- जो जीवन को संभाले
- जो समाज और प्रकृति में संतुलन बनाए
परिभाषा
“धारणात् धर्मः।”
(जो धारण किया जाए, वह धर्म है।)
“यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः।”
(जिससे अभ्युदय [सांसारिक उन्नति] और नि:श्रेयस [मोक्ष या परम कल्याण] की प्राप्ति हो, वही धर्म है।)
धर्म की भारतीय अवधारणा की विशेषताएँ
भारतीय दर्शन में धर्म की अवधारणा अत्यंत व्यापक है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं:
1. सार्वभौमिकता (Universality)
धर्म केवल व्यक्तिगत आचरण तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समाज और सृष्टि के संचालन का नियम है।
2. शाश्वतता (Eternality)
धर्म को सनातन कहा गया है। यह समय, स्थान और जाति से परे है।
3. संतुलन और समरसता
धर्म जीवन में संतुलन, संयम, नैतिकता और कर्तव्य बोध की भावना जगाता है।
4. जीवन के सभी पक्षों में धर्म
भारतीय दृष्टि में धर्म केवल ईश्वर भक्ति नहीं, बल्कि—
क्षेत्र | धर्म का रूप |
---|---|
व्यक्ति का आचरण | सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य आदि |
परिवार का धर्म | माता-पिता की सेवा, पत्नी की रक्षा |
राज्य का धर्म | न्याय, दंड, नीति |
प्रकृति का धर्म | वर्षा, वायु का बहना, सूर्य का उदय |
धर्म का स्वरूप— भारतीय ग्रंथों में वर्णन
1. वेदों में धर्म
वेदों में धर्म का अर्थ है— ऋत (Cosmic Order)।
ऋत ही वह सार्वभौमिक नियम है, जिससे सृष्टि चलती है।
सूर्य का उदय, वायु का प्रवाह, जल का प्रवाह— ये सब धर्म का पालन हैं।
2. उपनिषदों में धर्म
उपनिषदों में धर्म को आत्मा की शुद्धि, जीवन का उद्देश्य और मोक्ष का साधन माना गया है।
“धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा।”
(धर्म ही सम्पूर्ण विश्व का आधार है।)
3. महाभारत में धर्म
महाभारत में धर्म का अत्यंत गूढ़ विवेचन किया गया है।
युधिष्ठिर के शब्दों में:
“धर्मो रक्षति रक्षितः।”
(जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।)
महाभारत के अनुसार धर्म स्थिर नहीं होता, वह परिस्थिति के अनुसार बदलता है। इसे ही “आपद्धर्म” और “युगधर्म” कहा गया है।
4. मनुस्मृति में धर्म
मनु ने धर्म के दस लक्षण बताए हैं:
लक्षण | अर्थ |
---|---|
धृति | धैर्य |
क्षमा | क्षमा करना |
दम | इन्द्रिय संयम |
अस्तेय | चोरी न करना |
शौच | शुद्धता |
इन्द्रियनिग्रह | इन्द्रियों पर नियंत्रण |
धी | बुद्धि |
विद्या | ज्ञान |
सत्य | सत्य बोलना |
अक्रोध | क्रोध न करना |
धर्म के भेद
भारतीय दर्शन में धर्म के विभिन्न प्रकार बताए गए हैं:
भेद | विवरण |
---|---|
सामान्य धर्म (Sanatan Dharma) | सभी के लिए समान—सत्य, अहिंसा, संयम आदि |
विशेष धर्म (Vishesha Dharma) | व्यक्ति की स्थिति, समय, स्थान के अनुसार |
वर्णाश्रम धर्म | वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) और आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) के अनुसार कर्तव्य |
आपद्धर्म | संकट काल में विशेष धर्म |
धर्म का जीवन में महत्व
1. नैतिकता की स्थापना
धर्म व्यक्ति को नीति, नैतिकता और अनुशासन सिखाता है। यह जीवन को संतुलित बनाता है।
2. समाज में शांति और समरसता
धर्म समाज में सद्भाव, सहयोग और न्याय की भावना को जन्म देता है।
3. आत्मा का शुद्धिकरण
धर्म के आचरण से आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।
4. सृष्टि का संतुलन
प्रकृति भी धर्म का पालन करती है। जब मनुष्य धर्म से विमुख होता है, तब असंतुलन उत्पन्न होता है।
धर्म और मजहब में अंतर
आज के संदर्भ में “धर्म” को अक्सर “Religion” का पर्याय मान लिया जाता है, जबकि भारतीय दृष्टि में धर्म और मजहब में स्पष्ट भेद है:
धर्म | मजहब (Religion) |
---|---|
जीवन पद्धति | पूजा पद्धति |
सार्वभौमिक नियम | सम्प्रदाय विशेष की मान्यताएँ |
प्रकृति और समाज का संतुलन | आस्था और विश्वास का आधार |
कर्तव्य और नीति | विशेष भगवान की पूजा |
धर्म की वैज्ञानिकता
भारतीय धर्म प्रणाली में तर्क, विवेक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण निहित है।
उदाहरण:
- यज्ञ: पर्यावरण शुद्धि
- योग और ध्यान: मानसिक स्वास्थ्य
- आचार-विचार: समाज की व्यवस्था और शांति
धर्म के दार्शनिक दृष्टिकोण
1. वैदिक धर्म
- वेदों में धर्म को ऋत कहा गया है।
- यह ब्रह्मांडीय व्यवस्था का नियम है।
2. जैन धर्म
- जैन दर्शन में धर्म का अर्थ है— “जीवों की रक्षा करना।”
- अहिंसा ही परम धर्म है।
3. बौद्ध धर्म
- बौद्ध दर्शन में धर्म का अर्थ है— धम्म।
- सत्य, अहिंसा, करुणा और मध्यम मार्ग को धर्म कहा गया है।
4. वेदांत
- अद्वैत वेदांत में धर्म आत्मज्ञान की ओर ले जाने वाला साधन है।
- मोक्ष प्राप्ति के लिए धर्म का पालन आवश्यक है।
अध्यात्म और धर्म का संबंध
धर्म और अध्यात्म दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
- धर्म आचरण की शिक्षा देता है।
- अध्यात्म आत्मा की खोज और मोक्ष की दिशा दिखाता है।
भारतीय परंपरा में धर्म के बिना अध्यात्म अधूरा है और अध्यात्म के बिना धर्म रूढ़िवाद बन जाता है।
समय के साथ धर्म की भूमिका
प्राचीन काल में
- धर्म समाज की रीढ़ था।
- राजा और प्रजा धर्म के अनुसार आचरण करते थे।
मध्यकाल में
- धर्म में कई रूढ़ियाँ आईं।
- जातिवाद, अस्पृश्यता आदि ने विकृति उत्पन्न की।
आधुनिक काल में
- धर्म को पुनः व्यापक अर्थ में समझने की आवश्यकता है।
- स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने धर्म के सच्चे स्वरूप को जन-जन तक पहुँचाया।
वसुधैव कुटुम्बकम् और धर्म
भारतीय धर्म की अवधारणा “वसुधैव कुटुम्बकम्” पर आधारित है।
“सारी पृथ्वी एक परिवार है।”
यह भावना केवल भारत में ही पनपी, जो धर्म की सार्वभौमिकता को दर्शाती है।
धर्म की आधुनिक प्रासंगिकता
आज के समय में जब मानवता संघर्ष, हिंसा, पर्यावरण संकट और मानसिक तनाव से जूझ रही है, भारतीय धर्म की मूल भावना की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।
धर्म का सही अर्थ समझकर ही हम—
- समाज में शांति ला सकते हैं
- मानवता की रक्षा कर सकते हैं
- जीवन में संतुलन बना सकते हैं
निष्कर्ष
धर्म भारतीय जीवन की आत्मा है।
यह केवल कर्मकांड, पूजा या उपासना पद्धति नहीं, बल्कि एक समग्र जीवन-दर्शन है।
धर्म वह है जो समाज, सृष्टि और व्यक्ति के अस्तित्व को धारण करे।
भारतीय मनीषियों ने धर्म को मोक्ष का साधन, समाज की व्यवस्था का आधार और मानव जीवन की सफलता का मार्ग बताया है।
आज जब विश्व भौतिकता के अंधकार में है, भारतीय धर्म की वास्तविक परिभाषा ही मानवता का पथप्रदर्शक बन सकती है।
“धर्म वह नहीं जो विभाजित करे, धर्म वह है जो जोड़ता है, जो सिखाता है कि जीवन केवल अपने लिए नहीं, सबके कल्याण के लिए है।”