महमूद गजनवी का इतिहास History of Mahmud Ghaznavi
महमूद गजनवी का चरित्र एवं व्यक्तित्व-Character and personality of Mahmud Ghaznavi
वह एक महान सम्राट था। उसने अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित गजनी राज्य की सीमाओं को बहुत अधिक विस्तृत कर दिया। उसकी मृत्यु के समय गजनी साम्राज्य संबंध खराब हो गये। गजनी के शासक बहराम शाह ने गौर राजकुमार कुतुबद्दीन की हत्या करवाई। उसके भाई सैफुद्दीन ने गजनी पर आक्रमण किया, किन्तु उस को सफलता प्राप्त नहीं हुई। वह बन्दी बना लिया गया और बाद में उसका वध कर दिया गया। सैफुद्दीन के भाई अलाउद्दीन ने एक विशाल सेना संगठित कर गजनी राज्य पर आक्रमण किया। वह विजयी हुआ। उसने गजनी को खूब लुटा तथा वहाँ के भव्य भवनों को तोड़ डाला। उसकी मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र राज्यसिंहासन पर आसीन हुआ किन्तु वह केवल दो वर्ष तक शासन कर सका। उसके बाद ग्यासुद्दीन के हाथ में शासन की सत्ता आई। उसने गजनी राज्य पर अधिकार अपने भ्राता मुईजउद्दीन को वहां का शासक नियुक्त किया। यह मुईजउद्दीन ही भारतीय इतिहास में मुहम्मद गौरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसने गजनी में अपनी स्थिति को दृढ़ बनाने के उपरांत भारत में अपना साम्राज्य बनाने की ओर ध्यान दिया और इसी अभिप्राय से उसने भारत पर कई आक्रमण किए।
महमूद का भारतीय इतिहास और विशेषकर उसकी राजनीति से घनिष्ट संबंध नहीं रहा। उसने केवल पंजाब प्रान्त को अपने साम्राज्य में विलीन किया। इसी कारण भारतीय इतिहास में उसका कुछ न कुछ स्थान अवश्य है। उसके आक्रमणों का अध्ययन करने के उपरांत उसके चरित्र तथा व्यक्तित्व के विषय में ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। उसके चरित्र के संबंध मे इतिहासकारों का एक मत नहीं हैं। उसके चरित्र तथा व्यक्तित्व का अध्ययन विशेष सावधानी से करना चाहिए। महमूद का व्यक्तित्व आकर्षक नहीं था। वह कुरुप था किन्तु उसकी शारीरिक गठन बहुत अच्छी थी। वह बड़ा शक्तिशाली था। उसमें अदम्य उत्साह तथा साहस था। वह एक योग्य सैनिक होने के साथ-साथ युद्ध-कला में बड़ा प्रवीण था। वह एक कुशल-सेना नायक था। उसकी विश्व के महान सेनापतियों से तुलना की जा सकती है। वह बाबर, नैपोलियन, नेल्सन आदि के समान स्वाभाविक नेता एवं महान व्यक्ति था। वह सुदूरदर्शी तथा व्यावहारिक व्यक्ति था। वह केवल सम्भव कार्यों के करने में ही अपनी शक्ति का प्रयोग करता था। वह हवाई दुर्ग बनाने का आदी नहीं था। तत्पर रहता था। यह सम्राट कनिष्क के समान युद्धों से प्रेम करता था। उसमें उसके विरुद्ध कभी भी अरुचि उत्पन्न नहीं हुई। वह सैन्य संचालन की कला का पूर्ण ज्ञाता था। उसके आक्रमण इतनी शीघ्रता से होते कि वह शत्रु की सेना को बहुत कम समय में अस्त-व्यस्त कर दिया करता था। उसने कभी भी पराजय के दुःख का अनुभव नहीं किया। वह अपने जीवन में सदा सफल रहा।
महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की दशा-Condition of India at the time of invasion of Mahmud Ghaznavi
1.सामाजिक स्थिति- हिन्दू स्त्रियों के अपहरण, बलात्कार के कारण हिन्दुओं में पर्दा प्रथा, बाल- विवाह, कन्या वध तथा जौहर प्रथा जैसी बुराईयों को बल मिला। हिन्दू शिक्षा केन्द्र, मंदिरों के विनाश और निरन्तर युद्ध के कारण शिक्षा ग्रहण करने के अवसर नहीं रहे। अतः अशिक्षा, निरक्षरता, मूर्खता, अन्धविश्वास, अपनी धर्म-संस्कृति के ज्ञान का अभाव बढ़ गया। देश में जो हिन्दू मुसलमान बने वह अपने ही भाईयों के दुश्मन और दुश्मनों के मित्र बन गये। इस प्रकार मुस्लिमों की संख्या का बढ़ना भावी गुलामी, संघर्ष, देश विभाजन का संकेत थे जो सत्य होकर रहे। हिन्दुओं पर अत्याचारों से दोनों में स्थाई शत्रुता उत्पन्न हो गई। मन्दिरों के विनाश से मस्जिदें बनाई गई जो हिन्दुओं को सदैव अपमान, पराजय की याद दिलाती हैं।
समस्त देश में अराजकता एवं अव्यवस्थित स्थिति के फैलने के कारण
1.सामाजिक स्तर बहुत गिर गया था। समस्त समाज विभिन्न श्रेणियों में विभक्त था और उनमें ऊँच-नीच की भावना बहुत अधिक विद्यमान थी। उनमें से कुछ अपने आपको बहुत ऊँचा समझने लगे थे और अन्य जातियों के व्यक्तियों को घृणा की दृष्टि से देखने लगे। इसका विशेष दुष्परिणाम हुआ।
2.जाति बन्धन बड़े जटिल हो गये और उसका आधार ‘कर्म’ न होकर पूर्णतया ‘जन्म’ हो गया। वे भोगविलास की वस्तु समझे जानें लगी। भारत का विदेशों से संबंध विच्छेद हो गया जिसके कारण विदेशों में होने वाली प्रतिक्रियाओं से भारतीय पूर्णरूप से अनभिज्ञ हो गये। उनको वहां की रजनीतिक उथल-पुथल, सैनिक ढंग तथा अन्य बातों का ज्ञान न हो पाया। इससे भारतीयों के उत्साह तथा उनकी स्फूर्ति को बड़ा आघात पहुँचा। वह मन्द तथा कुण्ठित हो गई और भारतीयों ने किसी भी क्षेत्र में उन्नति नहीं कि। History of Mahmud Ghaznavi
2.आर्थिक स्थिति
1.उन्नत आर्थिक स्थिति- भारत की आर्थिक स्थिति उन्नत थी। वह धन-धान्य से पूर्ण था। कृषि भारत की अधिकांश जनता का मुख्य उद्यम था। भारत की उपजाऊ मिट्टी तथा खनिज पदार्थों की बहुलता के कारण भारतीयों को अपनी जीविका के उपार्जन में विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। राजाओं तथा उच्च कुल के व्यक्तियों का सम्पत्ति पर एकाधिकार था। उनकी आय बहुत अधिक थी।
2.राजाओं तथा जनता का कलुषित जीवन- वे अपना अधिकांश धन भोग-विलास में व्यय किया करते थे तथा दान आदि के रूप में अत्याधिक धन मन्दिर व अन्य सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं को दिया करते थे।
3.मन्दिरों की अतुल सम्पति- इसके कारण मन्दिरों की आय बहुत अधिक थी और उनके कोष में बहुत अधिक रुपये जमा रहता था। साधारण जनता का जीवन मामूली था। उनको इतना अवश्य मिल जाता था कि उनकी दैनिक आवश्यकताएँ सरलतापूर्वक पूर्ण हो जाती थी और उनको इनकी पूर्ति के लिये विशेष कठिनाई का अनुभव नहीं करना पड़ता था। उसका बाह्य व्यापार भी उन्नत था। इस उन्नत आर्थिक दशा के कारण ही भारत विश्व में ‘सोने की चिड़िया के नाम से विख्यात थी। भारत के धन को हस्तगत करने के लालच से ही महमूद भारत के ऊपर आक्रमण करने के लिये आकृष्ट हुआ। वह भारत से अतुल सम्पति ले गया जिसकी रक्षा करने में भारतीय राजवंश अयोग्य रहे।
3.धार्मिक स्थिति- जिस प्रकार भारत की सामाजिक स्थिति दिन प्रतिदिन पतन की ओर अग्रसर हो रही थी।
1.धार्मिक स्थिति डावांडोल थी। इस क्षेत्र में भी भारतीयों की दशा शोचनीय लग थी। इस स्थिति से उबारने का अथक परिश्रम स्वामी शंकराचार्य ने करने का प्रयास किया, किन्तु अल्प आयु में उनकी मृत्यु हो जाने के कारण वे अपने कार्य में पूर्णतया सफल नही हो सके। वे हिन्दू धर्म को दोषरहित करने में सफल नहीं हुए यद्यपि उनकी सेवाएँ हिन्दू धर्म के लिये महान् थीं। वे एक प्रकार से इस ओर से उदासीन से हो गये थे।
2.इस समय वाम मार्ग का बोल-बाला था जिसकी प्रमुख शिक्षा खाओ, पियो और मौज करो (Eat, drink and be merry) थी। History of Mahmud Ghaznavi
3.इससे शिक्षण संस्थाएँ भी प्रभावित हुई जिसका परिणाम शिक्षित वर्ग तथा विद्यार्थियों पर विशेष रूप से पड़ा और उनका जीवन कलुषित हो गया।
4.इसका फल यह हुआ कि मानव की प्रवृत्ति तथा आसक्ति भोग-विलास की ओर तीव्र गति से जाने लगी। मठों तथा विहारों में भी इसने घर कर लिया जहाँ का जीवन बहुत ही पवित्र तथा शुद्ध होना चाहिए था। जब धर्म के ठेकेदारों का ही जीवन अपवित्र तथा कलुषित हो गया तो साधारण जनता का तो क्या कहना था।
5.इस समय भारत में देवदासी की प्रथा आरम्भ हो गई थी। आरप्रत्येक मन्दिर में कुछ युवक तथा सुन्दर अविवाहित कन्या निवास करती थीं। इनका मुख्य कार्य मन्दिर के आराध्य देवता की उपासना, सेवा आदि करना था किन्तु बाद में ये कलुषित हो गई और इनको केवल भोग-विलास का साधन समझा जाने लगा। अतः मठ, विहार, मन्दिर, शिक्षण संस्थाएँ आदि सब जीवन कलुषित हो गया और जनता को उचित धार्मिक शिक्षा प्राप्त होना असम्भव हो गया।
4.राजनीतिक स्थिति – राजनीतिक परिणामों में राजाओं की शक्ति, उनकी प्रशासनिक व्यवस्था और सैन्य संगठन अत्यन्त निर्बल हो गये। उनमें पुनः उठकर विकास करने की क्षमता और विश्वास का लोप हो गया। कुछ राजाओं ने तो अपमान से आत्म हत्यायें कर लीं। अरबों ने राजपूत राजाओं को सामान्य रूप से कमजोर किया था और मेहमूद ने बहुत अधिक कमजोर किया जिसके कारण गौरी को इस्लामी राज्य की स्थापना में सुविधा हो गई।हर्ष की मृत्यु के उपरान्त भारत में कोई भी ऐसा सम्राट नही हुआ जिसमें इतनी शक्ति हो कि वह भारत को एक राजनीतिक सुत्र में संगठित कर समस्त बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करने में सफल होता। इसके परिणामस्वरूप भारत विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया। भारत के कुछ प्रदेशों पर (सिन्ध तथा मुल्ता पर) अरब वाले अपना राज्य स्थापित कर चुके थे। शेष भारत पर हिन्दु राजा राज्य कर रहे थे। ये विभिन्न राजवंश भारत के शत्रु के विरुद्ध भी एक झण्डे के नीचे देश को संगठित नहीं कर सके जिससे मुसलमान जाति को भारत में प्रविष्ट होने में विशेष असुविधा का सामना नहीं करना पड़ा। कहना है कि ‘इस समय भारत सोलहवीं शताब्दी के जर्मनी की शांति ऐसे राज्यों का समूह बन गया था जो अपने प्रत्येक उद्देश्य एवं कार्य के लिये स्वतंन्त्र था” उस समय भारत में निम्न प्रमुख राज्य विद्यमान थे :-
1.पंजाब का हिन्दू शाही राज्य- भारत के उत्तर-पश्चिम में प्रथम हिन्दू शाहि राज्य था। इस राज्य का विस्तार चिनाब नदी से हिन्दूकुश पर्वत तक था। इस राज्य के राजाओं को मुसलमानों से कई भीषण संग्राम करने पड़े। इसके ही कारण अरबवासी उत्तर भारत में प्रवेश नहीं कर सके। महमूद के आक्रमण के समय इस वंश का राजा जयपाल था जो बड़ा वीर तथा कुशल सेनापति था। उसका सुबुक्तगीन से भी युद्ध हुआ था जिसका वर्णन गत पृष्ठों में किया जा चुका है।
2.कश्मीर राज्य- दूसरा कश्मीर राज्य था। इस समय वहाँ एक स्त्री शासन कर रही थी, किन्तु समस्त प्रदेशों में अराजकता फैली हुई थी।
3.कन्नौज राज्य – इसके पूर्व में कन्नौज राज्य था। इस राज्य की बागडोर राज्यपाल के अधिकार में थी। वह बड़ा अयोग्य शासक था। वहाँ भी शासन की व्यवस्था बड़ी डावांडोल थी।
4.बंगाल का राज्य – बंगाल पर पालवंश के राजा का अधिकार था। वह भी अधिक शक्तिशाली राज्य नहीं था। उसका कन्नौज से सदा संघर्ष रहता था तथा दक्षिण के चोल वंश के प्रसिद्ध सम्राट राजेन्द्र चोल न उसको बुरी तरह परास्त कर उसकी शक्ति को आघात पहुँचाया था किन्तु इस प्रदेश पर महमूद ने आक्रमण नहीं किया।
5.गुजरात के राज्य – गुजरात पर चालुक्यों, बुन्देलखण्ड में चन्देलों और मालवा में परमारों का आधिपत्य था। पहले इन राज्यों पर कन्नौज राज्य का अधिकार था, किन्तु बाद में कन्नौज की शक्ति कम होते ही यहाँ पर नये राजवंशों का उदय हुआ। जिन्होंने अपने आपको कन्नौज-राज्य से स्वतंन्त्र कर लिया। History of Mahmud Ghaznavi
6.चोल राज्य – दक्षिण में चोलों के राज्य थे।
7.चालुक्य राज्य- चालुक्यों के विशाल राज्य थे जिनमें पारस्परिक संघर्ष विशेष रूप से हो रहा था। इससे यह स्पष्ट है कि अरब आक्रमण के उपरान्त पर्याप्त समय तक भारत पर किसी विदेशी जाति का आक्रमण नहीं हुआ। इसके कारण उन्होंने भारत की उत्तरी-पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करने की ओर विशेष ध्यान नही दिया। वास्तव में उनको किसी विदेशी आक्रमण का भय नहीं रहा और उन्होंने अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग पारस्परिक संघर्षों में कर डाला। इनमें राष्ट्रीय गौरव का सर्वथा अभाव था। उस समय भारत में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उनका ध्यान इस ओर आकर्षित करता और उनको यह शिक्षा प्रदान करता कि इस समय भारतवर्ष प्रत्येक व्यक्ति से अपने कर्तव्य का पालन करने की आशा करता है। इसके अभाव में परिणाम स्पष्ट था। History of Mahmud Ghaznavi
सांस्कृतिक और आर्थिक- व्यापार, शिल्प, गणित के क्षेत्र में थोड़ा आदान-प्रदान भी हुआ। इस प्रकार मेहमूद के आक्रमण से विध्वंस बहुत अधिक हुआ और सृजन बहुत कम रहा। भारत निर्धन बन गया।
मूल्यांकन – जहाँ तक मूल्यांकन की बात है विदेशी और आक्रमणकारियों की दृष्टि से और उनके परोक्ष समर्थकों की निगाह में मेहमूद एक पवित्र मुस्लिम शासक था, क्योंकि उसने गैर मुस्लिम देश पर आक्रमण किया, मूर्तियाँ तोड़ों, मंदिरों को नष्ट किया और काफिरों पर अत्याचार किये और उन्हें लूटा। तत्कालीन खलीफा, मुल्ला आदि उसे आदर्श मुसलमान मानते हैं। हबीब साहब कहते हैं कि वह धर्मान्ध नहीं था। भारतीय लोकहित के अनुसार मेहमूद निर्दयी, लुटेरा, कामुक, अत्याचारी, डाकू, धन का लोभी और धर्मद्रोही था।
महमूद गजनवी के आक्रमण के उद्देश्य-Objectives of Mahmud Ghaznavi’s invasion
1.सम्पत्ति प्राप्त करना- इस समय उत्तर भारत सिन्ध मुल्तान कश्मीर कन्नौज और बंगाल थे। हर्ष के काल से ही इन्मे परस्पर संघर्ष चल रहे थे। इसके कारण विशेष रूप से उत्तर पश्चिम के भारतीय राजाओं की शक्ति और आर्थिक दशा बहुत खराब हो चुकी थी। राजपूत का घमंडी स्वभाव शौर्य प्रदर्शन की भावना ऊंच-नीच की भावना परस्पर द्वेष दरबारी षड्यंत्र और विलासिता आदि के कारण उत्तर भारत में अराजकता की स्थिति थी। कुछ विद्वान इससे सहमत नहीं कि महमूद ने भारत में इस्लाम के प्रचार के लिये आक्रमण किये। उनके अनुसार उसके भारतीय आक्रमण धर्म प्रचार के लिये नहीं वरन् मन्दिरों में एकत्रित सम्पति को हस्तगत करने के उद्देश्य से थे और जब वह ऐसा कर लेता था, वह स्वदेश वापिस चला जाता था। वास्तव में यह धारणा सत्य के बहुत समीप है।
भारत के धन पर ही उसकी लालची आँखें थी और इसी से प्रभावित होकर उसने भारत पर आक्रमण किया। उसको मध्य एशिया में अपने साम्राज्य के विस्तार को दृढ़ रखने के लिये बहुत अधिक धन की आवश्यकता थी। जिसकी पूर्ति वह भारत से प्राप्त किये हुए धन द्वारा किया करता था। इसी कारण उसने राज्यों की राजधानियों पर आक्रमण न कर समृद्धिशाली नगरों तथा प्रसिद्ध व धन-धान्य से पूर्ण मन्दिरों को ही अपने आक्रमणों का लक्ष्य बनाया।
इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह भारत में अपने राज्य का विशेष विस्तार नहीं करना चाहता था। यदि उसका भारत में राज्य स्थापित करने का उद्देश्य होता तो वह राजाओं को परास्त कर उनके राज्यों को अपने राज्य में सम्मिलित करता, किन्तु वह मध्य एशिया की राजनीति में इतना अधिक व्यस्त रहा कि यह विचार उसके मस्तिष्क मे उत्पन्न ही नहीं हुआ।
2.इस्लाम धर्म का प्रचार- धन और स्त्रियों की लूट तथा उनसे वासना पूर्ति की प्रेरणा आक्रमण के लिए तुर्कों में जोश पैदा करती थी। आक्रमण में मुसलमान के तीन उद्देश्य पूरे होते थे-लूट में धन और स्त्रियां मिलन, साम्राज्य वृद्धि, इस्लाम की सेवा। अंत: उन्होंने आक्रमण किये। कुछ विद्वानों की यह धारणा है कि वह सैनिक शक्ति द्वारा इस्लाम धर्म का प्रचार करना चाहता था। खलीफा के आदेशानुसार उसने प्रतिवर्ष भारत पर आक्रमण करने की शपथ ली।
महमूद गजनवी के आक्रमण-Invasion of Mahmud Ghaznavi
उसने भारत पर 17 आक्रमण किये जिनका क्रमशः वर्णन निम्न पंक्तियों में किया जायेगा। वह शीतकाल के आरम्भ में भारत पर आक्रमण करता था और ग्रीष्म काल के आरम्भ होते ही वह गजनी वापिस चला जाता था। लगभग प्रत्येक आक्रमण में उसके समय-विभाग का क्रम इसी प्रकार था। अपने साम्राज्य की उचित व्यवस्था करने के उपरान्त उसने भारत पर आक्रमण करने आरम्भ किये।
1.पंजाब के राजा जयपाल पर आक्रमण- उसने सर्वप्रथम पंजाब के राजा जयपाल पर आक्रमण किया जो उसके पिता सुबुक्तगीन का प्रतिद्वन्दी तथा कट्टर शत्रु था। महमूद ने उसके राज्य कि सीमान्त प्रदेशों पर आक्रमण कर उनको लूटा तथा उसके कई दुर्गों पर अधिकार स्थापित किया। जब राजा जयपाल को यह समाचार विदित हुआ तो उसने प्रत्याक्रमण करने के अभिप्राय से एक विशाल सेना का संगठन किया। इसी बीच महमूद अपनी सेना लेकर भारत की ओर बढ़ा। जयपाल युद्ध के लिये तैयार था। दोनों सेनाओं में पेशावर के निकट भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में महमूद ने अपनी अश्वारोही सेना का सफलतापुर्वक संचालन किया जिसके कारण महमूद विजयी हुआ। यद्यपि राजा जयपाल ने बड़ी वीरता तथा उत्साह के साथ मुसलमानों कि सेना का सामना किया किन्तु राजा जयपाल अपने कुछ निकटतम संबंधियों के साथ बन्दी हुआ। बन्दी अवस्था में वह महमूद के सामने उपस्थित किया गया। राजा जयपाल मुक्त कर दिया गया और उसने उसके बदले में बहुत सा धन तथा हाथी देने का वचन दिया। इसके बाद महमूद ने राजा जयपाल की राजधानी वाहिन्द पर आक्रमण किया और वहाँ से उसने लूट-मार कर विशाल धन प्राप्त किया। अन्त में दोनों में सन्धि हो गई और राजा जयपाल को बहुत अधिक धन देना पड़ा। राजा जयपाल अपनी पराजय के कारण बहुत दुखी हुआ। वह इस अपमान को अधिक समय तक सहन नहीं कर सका। वह अपना राज्य अपने पुत्र आनन्दपाल को सौंप स्वयं चिता में जलकर भस्म हो गया। उसके इस कृत्य का प्रभाव उसके वंशजों पर यह हुआ कि उन्होंने सदा तुर्कों का विरोध किया। उसका पुत्र आनन्दपाल 1002 ई. में राज्य सिंहासन पर आसीन हुआ। History of Mahmud Ghaznavi
2.सीमान्त नगरों पर आक्रमण – सन् 1001 ई. में महमूद ने सीमान्त नगरों तथा दुर्गों पर आक्रमण कर सीमान्त के समस्त प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिया। वहाँ उसने शासकों की नियुक्ति की।
3.भेरा पर आक्रमण – सन् 1003 ई. मे महमूद ने तीसरा आक्रमण सिन्ध नदी पार कर झेलम नदी के तट पर स्थित भेरा नामक स्थान पर किया। वहाँ के राजा ने अदम्य उत्साह तथा साहस का परिचय देकर गजनी की सेना का बड़ी वीरता से सामना किया, किन्तु विजयी महमूद ही रहा। भेरा का राज्य उसने अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया। वहाँ के राजा को अपनी पराजय का बड़ा दुःख हुआ और उसने आत्महत्या कर ली।
4.मुल्तान पर आक्रमण- सन् 1005 ई. में महमूद ने मुल्तान पर चौथा आक्रमण किया। इस समय मुल्तान पर अब्दुल फतह दाऊद शासन कर रहा उसके राज्य पर आक्रमण किया। मार्ग कि कठिनाइयों का अनुमान करके महमूद ने पंजाब के राजा आनन्दपाल से अपनी सेना को उसके राज्य में से ले जाने की प्रार्थना की, किन्तु उसने महमूद की प्रार्थना की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया, वरन् वह महमूद का सामना करने के लिये एक विशाल सेना लेकर पेशावर की ओर चल पड़ा। अतः महमूद को पहले राजा आनन्दपाल से युद्ध करना पड़ा। राजा आनन्दपाल युद्ध में परास्त हुआ और उसने विवश होकर कश्मीर में शरण ली। इस विजय के बाद महमूद ने मुल्तान की ओर प्रस्थान किया। मुल्तान के शासक फतह दाऊद ने महमूद की सेना का बड़ी वीरता से सामना किया, किन्तु वह परास्त हुआ। उसने महमूद को वार्षिक कर देने का वचन दिया तथा तत्कालीन एक बड़ी धन-राशि उसकों भेंट स्वरूप प्रदान की। महमूद राजा आनन्दपाल के पुत्र सेवकपाल को अपना भारतीय राज्य सौंप गजनी चला गया, क्योंकि इसी समय उसको यह सूचना प्राप्त हुई कि सुल्तान ने गजनी पर अधिकार कर लिया है।
5.सेवकपाल पर आक्रमण – महमूद ने पाँचवा आक्रमण राजा आनन्दपाल के पुत्र सेवकपाल पर किया, क्योंकि उसने महमूद के चले जाने के उपरान्त अपने आप को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया था। सेवकपाल युद्ध में महमूद का सामना नहीं कर सका। वह परास्त हुआ और बन्दी बना लिया गया। उसने उससे दण्ड-स्वरूप तथा युद्ध-क्षति के रूप में बहुत सा धन वसूल किया।
6.राजा आनन्दपाल पर आक्रमण – सन् 1008 ई. में महमूद ने राजा आनन्दपाल पर छठा आक्रमण किया। उसने मुल्तान के शासक अब्दुल फतह दाऊद का महमूद के शासन से मुक्त होने में सहायता प्रदान की थी तथा उत्तरी भारत के राजाओं ने मुसलमानों की सत्ता का अन्त करने के अभिप्राय से एक संघ निर्मित किया था। महमूद राजा आनन्दपाल के इस कार्य को सहन नहीं कर सका। उसने तुरन्त उसकी राजधानी लाहौर पर आक्रमण किया। राजा आनन्दपाल ने इस समय अन्य भारतीय नरेशों की सहायता प्राप्त की। उसको दिल्ली, उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर, कन्नौज आदि के राजाओं ने सहायता दी। दोनों सेनाओं में बड़ा भिषण संग्राम हुआ जिसके कारण महमूद के सामने विकट समस्या उत्पन्न हुई। वह युद्ध बन्द करने का विचार कर ही रहा था कि राजा आनन्दपाल का हाथी बिगड़ गया और वह युद्ध-क्षेत्र से भागने लगा। इसका भारतीय सेना पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ा। उनका हृदय टूट गया तथा उनका क्रम बिगड गया। महमूद ने इस शुभ परिस्थिति से लाभ उठाया और उसने अपनी सेना को तीव्र गति से आक्रमण करने का आदेश दिया। हिन्दू-सेना युद्ध-स्थल से भागने लगी और महमूद ने उसको बुरी तरह परास्त किया। इस युद्ध में बहुत से हिन्दू सैनिक हताहत हुए और मुसलमानों को बहुत अधिक धन प्राप्त हुआ। इस विजय से महमूद तथा उसके सैनिकों का उत्साह अत्यधिक बढ़ गया और उसने कांगडा प्रदेश की राजधानी नगरकोट पर आक्रमण किया। उसको ऐसा समाचार मिला था कि नगरकोट में स्थित ज्वाला जी के मन्दिर में अतुल धन एकत्रित है। उसने इस धन को प्राप्त करने के अभिप्राय से यह आक्रमण किया। मुसलमानी सेना ने कांगड़ा के दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया। जब हिन्दुओं को अपनी रक्षा का कोई उपाय नहीं दिखा जो उन्होंने दुर्ग के फाटक खोल आत्मसर्पण कर दिया। मुसलमानों ने दुर्ग में प्रवेश कर उस पर अपना अधिकार स्थापित किया। वहाँ से भी महमूद को अतुल धन प्राप्त हुआ जिसको उसने विदेशी राजदूतों, सरदारों एवं प्रजा के समक्ष प्रदर्शित किया।
7.तालावाड़ी का युद्ध- सन् 1010 ई. में महमूद ने सातवां आक्रमण किया। इस बार वह दिल्ली पर आक्रमण करना चाहता था, किन्तु मार्ग में ही उसको तालावाड़ी के निकट हिन्दू सेना से युद्ध करना पड़ा। इस युद्ध में भी वह विजयी हुआ और वहाँ से वह बहुत सा धन लेकर स्वदेश वापिस चला गया।
8.मुल्तान पर आक्रमण- सन् 1011 ई. में महमूद ने आठवां आक्रमण दुबारा मुल्तान पर किया क्योंकि उसकी प्रथम विजय स्थायी न रह सकी थी। वहाँ के शासक अब्दुल फतह दाऊद ने अपने आपको स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया था। महमूद विजयी हुआ और मुल्तान पर उसका अधिकार स्थापित हो गया। History of Mahmud Ghaznavi
9.थानेश्वर पर आक्रमण- सन् 1012 ई. में महमूद ने नवां आक्रमण थानेश्वर पर किया। उक्त समस्त आक्रमणों की अपेक्षा यह आक्रमण बहुत प्रसिद्ध तथा महत्वपूर्ण है। थानेश्वर के राजा के पास बहुत से हाथी थे और उसको उन पर बड़ा विश्वास था। महमूद ने हाथियों को प्राप्त करने के लिये ही यह आक्रमण किया। हिन्दू-सेना ने महमूद की सेना का बड़ी वीरता से सामना किया, किन्तु अन्त में वहाँ के राजा को भागना पड़ा। महमूद विजयी हुआ जिसके परिणामस्वरूप उसको बहुत से हाथी तथा अतुल धन प्राप्त हुआ। मुसलमान सैनिकों ने वहाँ के मंदिरों को खूब लूटा।
10.लाहौर पर आक्रमण- महमूद ने दसवाँ आक्रमण लाहौर पर किया। इस समय वहाँ राजा आनन्दपाल का पुत्र त्रिलोचनपाल शासन कर रहा था। इस बार त्रिलोचनपाल के पुत्र भीमपाल ने बड़ी वीरता से मुसलमानी सेना का सामना किया, किन्तु महमूद विजयी हुआ। उसने इस बार समस्त पंजाब को अपने राज्य में मिला लिया।
11.कश्मीर पर आक्रमण – सन् 1015 ई. मे काश्मीर-विजय के लिये लालायित होकर महमूद ने ग्यारवां आक्रमण किया। उसके आक्रमण का उद्देश्य भीमपाल को बन्दी करना था जिसने भागकर कश्मीर में शरण ली थी। मौसम की खराबी के कारण महमूद को सफलता प्राप्त नही हुई और निराश होकर उसको गजनी लौटना पड़ा।
12.मध्य प्रदेशों पर आक्रमण- पश्चिमी भागों की विजय तथा लूट-मार करने के उपरान्त महमूद ने पूर्व के प्रदेशों पर आक्रमण किया। उसका यह बारहवां आक्रमण था। उसने यमुना नदी पार कर बरन (बुलन्द शहर) पर आक्रमण किया। महमूद विजयी हुआ और उसे अतुल धन प्राप्त हुआ और कुछ हाथी भी उसके हाथ लगे। इसके बाद उसने मथुरा पर आक्रमण किया। यह हिन्दुओं का प्रसिद्ध पवित्र स्थान था। यहाँ महमूद का विशेष सामना नहीं हुआ। उसने नगर में प्रवेश कर मन्दिर तथा नगर को खूब लूटा और उसके अधिकार में अतुल धन आया। उसके उपरान्त उसने कन्नौज पर आक्रमण किया जहां प्रतिहार वंश का राजा राज्यपाल शासन कर रहा था। इस समय कन्नौज उत्तरी भारत का केन्द्रीय नगर था। उसने लिखा है कि ‘यहाँ हजारों संगमरमर के भवन धर्मात्मा के धर्म के समान दृढ़ बने हुये हैं तथा यहाँ असंख्य मन्दिर है। ‘यहाँ के शासक ने शीघ्र ही बिना युद्ध किये महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली। यहाँ से भी महमूद को बहुत सा धन तथा हाथी प्राप्त हुये। इसके बाद अन्य कई नगरों को लूटता हुआ, वह स्वदेश चला गया।
13.कालिंजर पर आक्रमण- राजपूत राजा राज्यपाल के आत्मसमर्पण के कारण उसके शत्रु हो गये। उन्होंने उसको कालिंजर के राजा के नेतृत्व में राज्यसिंहासन से उतार दिया। महमूद ने उसको दण्ड देने के अभिप्राय ये 1019 ई. में तेरहवाँ आक्रमण कालिंजर पर किया। यहाँ का राजा गन्द बड़ा वीर तथा साहसी था किन्तु वह महमूद की सेना से भयभीत होकर रात्रि के समय दुर्ग छोड़कर भाग गया। महमूद ने नगर को खूब लूटा और अतुल धन प्राप्त किया।
14.पंजाब पर आक्रमण- पंजाब के शासन में शिथिलता उत्पन्न हो गई थी। वहाँ सुव्यवस्था की स्थापना के अभिप्राय से उसने इस बार पंजाब पर पुनः आक्रमण किया। सीमान्त प्रदेश के निवासियों का दमन करता हुआ वह आगे को बढ़ा। उसने पंजाब में सुव्यवस्थित शासन की स्थापना की।
15.ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण – सन् 1022 ई. में उसने ग्वालियर तथा कालिंजर पर पन्द्रहवां आक्रमण किया। वहां वह विजयी हुआ। उन्होंने उसको बहुत सा धन तथा हाथी भेंट स्वरूप प्रदान किये।
16.सोमनाथ पर आक्रमण – महमूद के अन्तिम आक्रमणों में सोमनाथ का आक्रमण सबसे महत्वपूर्ण तथा प्रसिद्ध आक्रमण था। यह उसका सोलहवां आक्रमण था जो सन् 1025 ई. में सौराष्ट्र के प्रसिद्ध मन्दिर पर हुआ। यह मन्दिर सौराष्ट्र के समुद्रतट पर स्थित था जिसमें एक विशाल लिंग स्थापित था। महमूद इस मन्दिर के एकत्रित धन के विषय में बहुत कुछ सुन चुका था। यह एक विशाल सेना लेकर रास्ते की अनेक कठिनाइयों को उठाता हुआ सोमनाथ के मन्दिर के द्वार पर पहुँच गया। उसकी रक्षा के लिये अनेक राजपूत राजा तथा सैनिक एकत्रित हो गये। उन्होंने मुसलमानों की सेना का खूब डटकर तथा वीरतापूर्वक सामना किया, किन्तु विजय महमूद की हुई और वह मन्दिर में प्रवेश करने में सफल हुआ। उसने सोमनाथ की मूर्ति के टुकड़े-टुकड़े कर दिये और उस स्थान पर एक मस्जिद की नींव डाली। ये टुकड़े उसने गजनी, मक्का और मदीने भिजवा दिये। जहां वे गलियों में तथा मस्जिद की सीढ़ियों में डलवा दिये गये जिससे वे मुसलमानों के पैरों के नीचे आयें। जिस समय महमूद सोमनाथ की मूर्ति अपनी गदा से तोड़ रहा था तो ब्राह्मणों ने उस मूर्ति को न तोड़ने की प्रार्थना की तथा उसके बदले में वे उसको अतुल धन देने को उत्सुक थे; किन्तु महमूद ने उनकीं प्रार्थना की और ध्यान नहीं दिया। उसने उनकी प्रार्थना का उत्तर इन शब्दों में दिया कि “मै मूर्ति बेचने वाले के नाम से नहीं वरन् मूर्ति तोड़ने वाले के नाम से विख्यात होना चाहता हूँ।” इस संबंध में कुछ विद्वानों का मत है की, यह कथा केवल काल्पनिक है, जो बाद में घड़ ली गई है।
17.खोखरों का आक्रमण- खोखरों पर आक्रमण महमूद का अन्तिम अर्थात सत्रहवां आक्रमण खोखरों के विरुद्ध हुआ। इन्होंने महमूद को गजनवी वापिस जाते समय बहुत तंग किया था। इनकी दृष्टता का दण्ड देने के लिये महमूद ने उन पर आक्रमण किया और उनका बुरी तरह दमन किया।
महमूद गजनवी की मृत्यु-Death of Mahmud Ghaznavi
30 अप्रैल सन् 1030 ई. में इस महान विजेता की मृत्यु हुई। जिस समय उसकी मृत्यु हुई उस समय गजनी साम्राज्य बड़ा विशाल था और उसका राजकोष असंख्य धन राशि से परिपूर्ण था।
महमूद गजनवी के आक्रमणों के प्रभाव-Effects of Mahmud Ghaznavi’s invasions
1.अग्रदूत का कार्य – महमूद के आक्रमणों ने मोहम्मद गौरी के आक्रमणों के लिये अग्रदूत का कार्य किया। यह महमूद ही था जिसने बारहवीं शताब्दी में मुहम्मद गौरी की भारत में अधिक स्थायी विजयों के लिये द्वार खोल दिया। कुछ विद्वानों की ऐसी धारणा है कि यदि मुहम्मद गौरी को महमूद गजनवी का निर्देशित मार्ग न मिला होता तो वह अपना कार्य सम्पन्न नहीं कर सकता था।
2.आक्रमण के लिये नये मार्ग खुलना- मुसलमानी आक्रमण के लिये एक नया मार्ग खुल गया और यह सिद्ध कर दिया कि उसके द्वारा खोला हुआ मार्ग अरब वालों के द्वारा खोले हुये मार्ग की अपेक्षा बहुत अधिक सुगम है और वास्तव में इसी मार्ग द्वारा भारत की विजय सम्भव है। अरब वालों का मार्ग बड़ा कठिन था और उनको भारत के कुछ प्रदेशों में ही प्रवेश करने का अवसर प्राप्त हुआ। महमूद के आक्रमणों के उपरांत भारत पर अन्य समस्त आक्रमण इसी मार्ग से हुये और आक्रमणकारियों को विशेष सफलता प्राप्त हुई।
3.अतुल सम्पत्ति का विदेश जाना- उसके आक्रमण द्वारा भारत की अतुल धन-सम्पत्ति विदेश चली गई, जिसके कारण भारत की आर्थिक स्थिति को विशेष धक्का पहुँचा। उसने हिन्दुओं के उन मन्दिरों को विशेष रूप से लूटा जिनमें शताब्दियों से एकत्रित किया हुआ अतुल धन संचित था। महमूद ने इस सम्पत्ति का प्रयोग अपनी पश्चिमी विजयों में किया।
4.राजाओं की शक्ति को आघात- उसके निरन्तर आक्रमणों के कारण भारतीय नरेशों की सैनिक शक्ति को आघात पहुँचा।
5.स्थापत्य-कला के नमूनों का अन्त- महमूद ने बहुत से मन्दिरों तथा भव्य भवनों को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला जिसके कारण भारतीय कला को बड़ी हानि पहुँची।
6.अधिकांश भारत का ज्ञान- महमूद ने भारत पर सत्रह आक्रमण किये जिनके कारण मुसलमानों को उत्तरी भारत के अधिक भाग का ज्ञान प्राप्त हो गया तथा उनको भारत की विभिन्न दुर्बलताओं का भी ज्ञान प्राप्त हुआ जिससे भविष्य में होने वाले आक्रमणों का उन्होंने विशेष लाभ उठाया।
7.पंजाब का भारत से संबंध विच्छेद- पंजाब को महमूद ने अपने विशाल साम्राज्य में सम्मिलित किया। इससे पंजाब का भारत से संबंध-विच्छेद हो गया और वह अफगानिस्तान के अधिक निकट हो गया।
8.सैनिक दुर्बलता का ज्ञान- भारतीयों की राजनीतिक तथा सैनिक दुर्बलता का ज्ञान विदेशियों को लग गया जिन्होंने बाद में उसका पुर्ण रूप से लाभ उठाया।