सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव एवं विस्तार Historical expansion of Indus Valley Civilization

Historical expansion of Indus Valley Civilization

सिंधु सभ्यता का इतिहास – 

सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव एवं विस्तार – Historical expansion of Indus Valley Civilization

ग्रामीण संस्कृति का विकास-

पुराने अवशेषों को देखकर यह साफ पता चलता था की बलूचिस्तान और दक्षिणी पूर्वी अफगानिस्तान में ग्रामीण संस्कृतियों का विकास हो चुका था। बलूचिस्तान के बोलन दर्रे नदी के निकट मेहरकर स्थान पर 7000 बी सी से 2000 बी सी के बीच लगातार मानव विकास के चिन्ह मिलते रहे हैं। जिसमें हमें देखने को मिला है फल संग्रह,पशु चरक और कृषि उत्पादक। रहमान डेरी जैसे जगह पर मातृभाड़,सिंधी देवता,शुंग वाले देवता तथा अनेक तत्वों के साक्ष मिले हैं। उत्तर पश्चिमी बलूचिस्तान और अफगानिस्तान किन्नर कंकालों के साक्ष से अध्ययन किया जाए तो साफ पता चलता है कि यह आज के निवासियों से मेल खाते हैं। इसका मतलब वे बाहर से नहीं आए थे।

सामाजिक व्यवस्था-
सिंधु काल की व्यवस्था में कुछ विशेष जानकारी नहीं मिलती लेकिन कुछ साक्ष को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में शहरी और ग्रामीण समाज रहते थे। ग्राम में उद्योग से जुड़े हुए लोग रहते थे। सिंधु सभ्यता में कृषि उत्पादन सफल रहा है। सिंधु सभ्यता के लोग पशुपालन भी करते थे जिन्हें खानाबदोश भी कहा जाता था। सामग्री का लेनदेन शुरुआत हो गया था एक स्थान से दूसरे स्थान सामग्रियां पंहुचाने जाने लगी थी। इस सभ्यता में तकनीकी विकास का साक्ष्य मिलता है। अधिकांश इतिहासकारों का मानना है की पुरोहितों को श्रेष्ठ माना जाता था। बच्चों का साक्ष पाया गया है। छोरा,धनुष,बाण,मुसल,गदा इनके भी साक्ष मिले हैं।

श्रमिकों की स्थिति-
श्रमिकों का भी साक्ष मिला है। मकान सड़कों को देखकर यह कहा जा सकता है कि कारीगर उस समय रहे हैं। कुछ आकृतियां देखने को मिली जिनमें सर झुके हुए एवं कपड़े ढके हुए हैं उन्हें दास वर्ग का बताया जाता है। उद्योग से जुड़ी चीज जैसे कलाकार,कारीगर,सेल्फ,शहरी,विनाश ,घर और सड़क को देखकर और वास्तविक अभियंता रहे होंगे। कालीबंगा और लोथल में शल्य चिकित्सा के साक्ष भी मिले हैं।

स्त्रियों की दशा-
नारियों की मूर्तियां मिली है इससे यह कहा जा सकता है कि उस समय नारियों को काफी सम्मान दिया जाता था वेश्याओं के भी साक्ष मिले हैं जो शहर का एक भिन्न अंग है।मोहनजोदड़ो से एक नृत्य की कांस्य की मूर्ति मिली है। नर कंकालों के आधार पर चार जनजातियों के साक्ष्य पाए गए हैं भूमध्य सागरीय,ऑस्ट्रेलिया,मंगोलियन,अल्पाइन। दीर्घ मस्तिष्क वाले नर कंकाल अधिक बताए जाते हैं।

वेशभूषा-
वेशभूषा का प्रमाण मूर्तियों से मिलता है। कपड़े सूती एवं उन होंगें। (मोहनजोदड़ो-सूती) (मेहरगढ़- कपास)। इन्हें सिंड्रोन कहते थे जो उमा में मिले हैं। पुरुष और महिलाओं के वस्त्र एक समान थे। ऊपर गहने और नीचे मेखला पहना करते थे। यह लोग शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों थे तथा औषधी के रूप में मछली के कांटों एवं जानवरों की हड्डी का प्रयोग किया करते थे।

सौंदर्य प्रसाधन-
हड़प्पा से प्रसाधन का एक साधन बॉक्स मिला है। चन्हूदड़ों से लिपस्टिक का भी साक्ष मिला है। यह लोग शीशे,तांबे,कैसी,कंगी का प्रयोग करते थे। नौसरो से सिंदूर का साक्ष मिला है। मनोरंजन के साधनों में संगीत,ढोल,नृत्य जैसे वाद्य यंत्र।खेलने के लिए शतरंज जैसी चीज। इसकी गोटी भी पाई गई है इसका साक्ष सुमेरिया में भी पाया जाता है।

सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन-
सिंधु सभ्यता का आर्थिक व्यवस्था तीन भागों में बंटा हुआ था कृषि,व्यापार और उद्योग प्रणाली। शहरों में अन्नागार के साक्ष पाए गए हैं। सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे बड़ी संरचना मोहनजोदड़ो का अन्नागार है। इससे यह कहा जा सकता है कि अधिक उत्पादन होता रहा होगा। नगर और मकान बनाने के लिए जिस तरह के श्रम की संभावना दिखती है उससे लगता है कि काफी संख्या में मजदूरों की नियुक्ति की जाती थी। सिंधु घाटी में मुद्रा नहीं थी इसलिए शायद वेतन के रूप में अनाज को ही दिया जाता रहा होगा। इससे कह सकते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता में कृषि व्यवस्था काफी उन्नत थी।Historical expansion of Indus Valley Civilization

सिंधु सभ्यता के शासको ने कृषि विकास पर उतना महत्वपूर्ण जोर नहीं दिया हालांकि कृषि व्यवस्था संपूर्ण रूप से ग्राम वासियों के नियंत्रण में थी।बलूचिस्तान में बब्बर या कच्छ जैसे बांध का साक्ष मिलता है कूए भी देखे गए। इन्हीं से सिंचाई होती रही होगी। कालीबंगा से पूर्व में खेतों के साक्ष मिले हैं सिंधु सभ्यता में लकड़ी के हल प्रयोग करते थे। हीरो नामक दातेनुमा उपकरण का प्रयोग करते थे।Historical expansion of Indus Valley Civilization

कृषि व्यवस्था-
हर साल बाढ़ के कारण ऊर्जा मिट्टी की परत जम जाती थी। इसलिए आसानी से कृषि का विकास किया जा सका। इसलिए कम मेहनत में आसानी से बिना किसी खास उपकरण के उत्पादन किया जा सका। खाद्य के प्रयोग का साक्ष्य नहीं मिला। नवंबर के महीने में बीज बोते थे और मार्च अप्रैल में बाढ़ आने से पहले काट लिया करते थे।

पंजाब सिंध के क्षेत्र में बनवाली गेहूं कालीबंगा के क्षेत्र में थोड़ा और जो और लोथल के क्षेत्र में सरसों तेल राई मटर ज्वार रागी कपास और कांड के साक्ष मिले हैं। सिंधु सभ्यता में सोने का आयात कर्नाटक के कोलार से किया जाता था यहां से 2500 बी सी से सोने निकालने का साक्ष पाया गया है।

व्यापार व्यवस्था-
चांदी की आयात पर्शिया और अफगानिस्तान से की जाती होगी। सिंधु सभ्यता में चांदी सोने से ज्यादा थे। व्यापार के लिए इक्का या बैलगाड़ी का प्रयोग किया जाता था। पत्थर मध्य एशिया से मंगाए जाते थे। सिंधु सभ्यता में पत्थर बहुमूल्य था। इन पत्थरों को अफगानिस्तान मणि लाजवरदा के बदकसा से मंगाया जाता था।

मेहरगढ़ में भी लाजवरदा मणि का साक्ष मिला है। इन पत्थर और चांदीयों से यह साफ पता चलता है की धनि एवं गरीब वर्ग में स्पष्ट अंतर था। हड़प्पा से एक ऐसी ही सवारी खिलौने के रूप में साक्ष मिला है जो कांसे की बनी हुई है जो ऊपर से ढकी हुई है।

ऊष्मा में सूती वस्त्र का साक्ष मिलता है किश और निपुर में हड़प्पा लिपि का भी साक्ष मिला है। सिंधु सभ्यता विश्व की वह पहले सभ्यता थी जिसे सूती वस्त्र का प्रयोग किया। इसका नाम उन्होंने सिंह के अनुसार आधार पर रखा। सिंधु सभ्यता में मुद्राएं भी चलती थी। यह व्यापार प्रमुख रूप से समुद्र मार्ग से जहाज बनाओ से होता था। मुहर पर जहाज के चित्र हैं नाव और जहाज के छोटे खिलौने भी पाए गए हैं।

सिंधु घाटी में चन्हूदरो और लोथल औद्योगिक शहर थे। यहां पर पत्थर दांत हाथी बहुमूल्य पत्थर सामग्री के अधूरे बने हुए साक्ष मिलते हैं। वस्त्रो को तथा चीजों को रंगने की कला भी सिंधु वासी जानते थे। बैंगनी रंग के सर्वाधिक साक्ष मिले हैं। यहां सबसे अधिक सामग्री पत्थर या पाषाण की पाई गई है इसलिए इसे पाषाण संस्कृति भी कहते हैं।

सिंधु सभ्यता का सांस्कृतिक एवं धार्मिक जीवन-
सिंधु सभ्यता के लोग प्राचीन विश्व सभ्यता के तरह देववादी एवं प्रकृति पूजक थे। वे जल वृक्ष अग्नि एवं पशु को प्रकृति के विभिन्न शक्तियों के रूप में पूजते थे। खुदाई से यह पता चलता है कि कुछ मूर्तियां एवं मुहरो के आधार पर चित्रों के आधार पर उनकी धार्मिक विशेषताओं का पता चलता है।Historical expansion of Indus Valley Civilization

पूजा पद्धति-
वहां की मात्र देवी को सृष्टि निर्माण करता एवं वनस्पतियों की अधिष्ठात्री के रूप में दिखाया गया है। मोहनजोदड़ो हड़प्पा एवं अन्य स्थानों से मात्र देवी की अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई है। सिंधु सभ्यता से प्राप्त मृणमूर्तियां में माता को शिशु को दूध पिलाते हुए एवं स्त्री के गर्भ से पौधा निकलते हुए दिखाया गया है। नरबलि का प्रमाण मिला है। शिव के नारी रूप धनुर्धर रूप नर्तक रूप नागधारी रूप का भी चित्रण मिलता है। वहां पर पूजा स्थल और मंदिर ज्यादा नहीं थे तो हम कह सकते हैं की पूजा का स्वरूप सार्वजनिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत था।

प्रजनन शक्ति की भी पूजा करते थे। बड़ी संख्या में चीनी मिट्टी एवं धातु पत्थर के बने छोटे-बड़े लिंग मिले हैं। इससे यह कहा जा सकता है कि सिंधु वासी मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे। Historical expansion of Indus Valley Civilization

पशु पूजा-
सिंधु वासी पशुओं की पूजा करते थे वे मानते थे कि यह उनके भगवान के अंश हैं। पशुओं में कूबड़दार सांड सबसे प्रमुख था। पशुओं और नागौं की भी पूजा करते थे। अनेक प्रकार के पशु चित्र मिले हैं उनके मुहर में।

निसर्ग पूजा-
सिंधु घाटी में वृक्ष पूजा प्रचलित थी। जिसमें वे प्रमुख रूप से पीपल और नीम की पूजा करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर में दो जुड़वा पशुओं के सिरों पर पीपल की पत्ती दिखाई देती है। बाकी मुहर में पीपल की डालों के बीच एक देवता के साथ स्त्रियां आराधना करते हुए नजर आती है। स्नान को वह धार्मिक अनुष्ठान मानते थे इसलिए वह मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार भी मिला है वह जल देवता या नदी पूजा के साक्ष्य भी मिले हैं। तथा श्रृंगस्तंभ एवं स्वास्तिक के चिन्ह भी मिले हैं। कालीबंगा एवं लोथल से यज्ञ वेदिकाएं भी मिली हैं। अग्नि पूजा एवं बली का प्रमाण भी मिलता है धार्मिक अवसरों पर नृत्य ज्ञान चलता था।

शवदाहन पद्धति-
सिंधु सभ्यता में शवदाहन तीन प्रकार से करते थे। पहले शव को जमीन में दफनाते और उनके साथ में उनकी आवश्यकताओं की प्रमुख वस्तुएं और दीपक आदि को रख देते। दूसरी और वे शव को पशु पक्षियों के खाने के लिए खुला छोड़ देते। और फिर शव को दफना देते हैं। तीसरा में शव को अग्नि द्वारा जला देते हैं और फिर सब को मिट्टी के पात्र में भरकर दफना दिया जाता था। यहां काफी अंधविश्वास भी प्रचलित था लोग बुरी शक्तियों से बचने के लिए ताबीज एवं जादू मंत्र का सहारा लिए करते थे। Historical expansion of Indus Valley Civilization

सिंधु घाटी सभ्यता का पतन

पर्यावरण का संतुलन-
डेल्स महोदय के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता के विकास के दौरान जब वे लोग लकड़ी का प्रयोग छत ईंटों को पकाने के लिए करते और कृषि के क्षेत्र में विस्तार नीति के कारण मानसून पर काफी प्रभाव पड़ा जिससे उनका पतन हुआ। 2000 बीसी के बाद बारिश कम होने लगी इस शहरी सभ्यता पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ा। कुछ इतिहासकारों ने बाढ़ को सिंधु सभ्यता के पतन का प्रमुख कारण बताया है।
पुरातात्विक प्रमाण मिलता है कि मोहनजोदड़ो में बालू के रेत का 7 स्तरीय परत पाया गया है। चन्हूदरो की भी स्थिति यही थी।एस आर राव के अनुसार लोथल विभाग का शिकार हो गया था।

डील्स और साहनी के अनुसार अरब सागर कैटल ऊंचा होने से सिंधु का पानी अरब सागर में ना जाकर वही जमने लगा पानी के जमाव के कारण अधिकांश क्षेत्र में यातायात कृषि व्यवस्था पड़ गई और शहरों का प्रभाव भी समाप्त हो गया। एक दूसरे सिद्धांत के अनुसार प्लेट टेक्टोनिक के कारण सिंधु के पास सेहवान में बांध बन गया और सिंधु सभ्यता में बाढ़ आ गई। Sindhu Ghati Sabhyata ka Udbhav evam Vistaar

भूकंप स्थिति-
1000 बीसी में रवि नदी 6 से 8 किलोमीटर दूर बहने लगी। लकड़ी के उपयोग के चलते होने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा इतना ही नहीं कृषि के विकास के लिए वनों को काटा गया पशुओं को चराने के लिए हरियाली समाप्त हो गई एवं वहां वातावरण पर इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जिसे सभ्यता का पतन हो गया। बलूचिस्तान के राणा घुठई की आग से नष्ट होने का साक्ष्य और टूटे हुए मकान के आधार पर इस सिद्धांत को स्वीकार किया जाता है।

राजस्थान में टेक्निक और भूकंप की गतिविधियों के कारण घग्गर नदी की सहायक सतलज और यमुना ने अपना मार्ग बदल दिया जिससे घग्गर नदी धीरे-धीरे सूखने लगी घग्गर नदी के तट पर बसे हुए शहर समाप्त होने लगे। जिस प्रकार प्रशासकीय वर्ग उद्योगपति और व्यापारियों ने शोषण करते हुए संस्थाओं का निर्माण किया था जिसे अत्याचार की गंद आती है और इसी के विरुद्ध कृषक मजदूर ने प्रशंसकों का विरोध किया। इतिहासकारों का मानना है कि आपसी लड़ाई झगड़े और युद्ध में एक दूसरे को मार कर भी इनका पतन हुआ।

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