पोरस कौन था? Who was Porus?
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प्रस्तावना
भारत का इतिहास अनेक महान योद्धाओं, शूरवीरों और राजाओं की वीरगाथाओं से भरा पड़ा है। ऐसे ही एक अद्वितीय योद्धा और राजा थे पोरस। पोरस प्राचीन भारत के उन महान राजाओं में से एक थे, जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध अपने साहस, शौर्य और अदम्य आत्मविश्वास से संघर्ष किया। वे विशेष रूप से अलेक्जेंडर महान (सिकंदर) के साथ हुए हाइडस्पीज (झेलम नदी) के युद्ध के लिए प्रसिद्ध हैं। पोरस की वीरता का लोहा स्वयं सिकंदर ने भी माना और उसे सम्मानपूर्वक पुनः अपने राज्य का शासक बना दिया।
पोरस का परिचय
पोरस प्राचीन भारत के पंजाब क्षेत्र में स्थित पुरुवंशीय राज्य के शासक थे। उनके राज्य का मुख्य केंद्र झेलम और चिनाब नदियों के बीच का क्षेत्र था। ग्रीक इतिहासकारों ने उन्हें ‘पोरस’ नाम से उल्लेखित किया है, लेकिन यह उनके मूल नाम का रूपांतर माना जाता है।
पोरस अपने विशाल शरीर, ऊँचे कद, वीरता और रणनीतिक कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। ग्रीक लेखक अरियन और कुरटियस के अनुसार पोरस एक असाधारण योद्धा थे और युद्धभूमि में हाथियों का उपयोग करने वाले भारतीय शासकों में अग्रणी थे।
पोरस का राज्य और उसकी शक्ति
पोरस का राज्य सिंधु (इंडस) और झेलम नदी के बीच फैला हुआ था। यह क्षेत्र कृषि, पशुपालन और व्यापार में समृद्ध था। पोरस की सेना में बड़ी संख्या में हाथी, घुड़सवार सैनिक, पैदल सेना और रथ थे। हाथी पोरस की सेना की मुख्य शक्ति थे, जो दुश्मनों के लिए भयावह सिद्ध होते थे।
पोरस और सिकंदर का युद्ध
सिकंदर का भारत आगमन
मैसेडोनिया का राजा अलेक्जेंडर (सिकंदर महान) विश्व विजय के अभियान पर निकला था। 326 ईसा पूर्व वह भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर पहुँचा। उसने सबसे पहले पंजाब के छोटे राज्यों को अपने अधीन किया। राजा अंबी (तक्षशिला के शासक) ने सिकंदर से संधि कर ली, लेकिन पोरस ने संधि का विरोध किया और युद्ध का सामना करने का निश्चय किया।
हाइडस्पीज (झेलम) का युद्ध – 326 ईसा पूर्व
सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध झेलम नदी के तट पर हुआ। यह युद्ध इतिहास में हाइडस्पीज का युद्ध (Battle of Hydaspes) नाम से प्रसिद्ध है।
- सिकंदर की सेना में लगभग 30,000 पैदल सैनिक, 5,000 घुड़सवार, और 300 युद्ध रथ थे।
- पोरस की सेना में 30,000 पैदल सैनिक, 4,000 घुड़सवार, और लगभग 200 युद्ध हाथी थे।
युद्ध की रणनीति
सिकंदर ने अपनी सेना को झेलम नदी के पार उतारने की योजना बनाई। पोरस ने नदी के दूसरे किनारे अपनी सेना के साथ मोर्चा संभाल लिया।
- सिकंदर ने रात के समय अपनी सेना का एक हिस्सा गुप्त रूप से नदी के दूसरी ओर पार करवाया।
- पोरस ने युद्ध के मैदान में अपने हाथियों को आगे रखकर सिकंदर की घुड़सवार सेना को रोकने की कोशिश की।
- हाथियों की गरज और आक्रामकता ने ग्रीक सैनिकों को पहले तो डराया, लेकिन बाद में सिकंदर ने चालाकी से उन्हें मात दी।
युद्ध का परिणाम
यद्यपि युद्ध में पोरस की सेना पराजित हुई, लेकिन उन्होंने अंत तक डटकर संघर्ष किया। युद्ध के बाद जब सिकंदर ने पोरस को कैदी बना लिया और उनसे पूछा –
“तुम्हारा व्यवहार कैसा होना चाहिए?”
तब पोरस ने उत्तर दिया – “राजा के समान।”
पोरस की वीरता और आत्मसम्मान से प्रभावित होकर सिकंदर ने न केवल उन्हें क्षमा किया, बल्कि उनके राज्य को पुनः लौटा दिया और उनके राज्य में अधिक क्षेत्र जोड़कर उन्हें और शक्तिशाली बना दिया।
पोरस की वीरता और गुण
- अदम्य साहस:
पोरस ने विदेशी आक्रमणकारी का डटकर सामना किया, जबकि उनके पास सिकंदर जैसी आधुनिक सेना नहीं थी। - आत्मसम्मान:
युद्ध हारने के बाद भी उन्होंने सिकंदर के सामने झुकने के बजाय राजसी गरिमा बनाए रखी। - रणनीतिक कौशल:
पोरस ने युद्धभूमि में हाथियों का उपयोग बड़ी कुशलता से किया। - जनप्रिय शासक:
वे अपने प्रजा के हितैषी और न्यायप्रिय राजा थे।
पोरस और भारतीय इतिहास में उनका महत्व
पोरस केवल एक राजा नहीं, बल्कि भारतीय वीरता और आत्मसम्मान का प्रतीक हैं। उनकी गाथा यह सिद्ध करती है कि भारतीय शासक बाहरी आक्रमणकारियों के सामने कभी आसानी से नहीं झुके।
- पोरस की वीरता का वर्णन ग्रीक इतिहासकार अरियन, प्लूटार्क, और कुरटियस ने विस्तार से किया है।
- पोरस का युद्ध भारतीय उपमहाद्वीप में विदेशी शक्तियों की सीमाओं को दिखाता है।
पोरस के बाद की स्थिति
सिकंदर की सेना झेलम युद्ध के बाद आगे बढ़ना चाहती थी, लेकिन उसके सैनिक थक चुके थे। वे गंगा के मैदान में प्रवेश करने से डरते थे क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि आगे के राज्यों की सेनाएँ और भी विशाल हैं। अंततः सिकंदर को वहीं से लौटना पड़ा।
पोरस की गाथा और प्रेरणा
पोरस की गाथा हमें सिखाती है –
- सम्मान से जीवन जीना चाहिए, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
- विदेशी आक्रमण के सामने देश और धर्म की रक्षा सर्वोपरि है।
पोरस से जुड़े रोचक तथ्य
- पोरस का उल्लेख ग्रीक इतिहासकारों ने ‘Porus’ के रूप में किया, लेकिन उनका असली नाम ‘पुरु’ या ‘पुरुषोत्तम’ हो सकता है।
- पोरस का युद्ध प्राचीन भारत में पहला प्रलेखित युद्ध है जिसे पश्चिमी इतिहासकारों ने विस्तार से दर्ज किया।
- सिकंदर ने पोरस को ‘सबसे वीर राजा’ की उपाधि दी थी।
- युद्ध में पोरस का पसंदीदा हाथी ‘रावण’ या ‘भद्रक’ था, जो स्वयं एक योद्धा की तरह लड़ा।
पोरस की विरासत
आज भी पोरस भारतीय संस्कृति में वीरता और आत्मगौरव के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। फिल्मों, धारावाहिकों और साहित्य में पोरस का चरित्र अनेक बार चित्रित किया गया है। उनका चरित्र यह बताता है कि भारत सदियों से विदेशी आक्रमणकारियों के सामने वीरता से खड़ा रहा है।
निष्कर्ष
पोरस भारतीय इतिहास के उन महान योद्धाओं में से हैं जिनकी वीरता को केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशी लेखक और इतिहासकार भी स्वीकारते हैं। उनका संघर्ष इस बात का उदाहरण है कि चाहे शत्रु कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, आत्मसम्मान, साहस और दृढ़ निश्चय से उसे चुनौती दी जा सकती है।
पोरस की गाथा हमें यह सिखाती है कि हार कर भी कोई व्यक्ति विजेता बन सकता है, अगर उसमें आत्मगौरव, साहस और अडिग संकल्प हो।